रविवार, 5 फ़रवरी 2017

अपनी कौन सी आदत बुरी लगती है आपको?



कल बातों ही बातों में मैंने अपनी सहेली से पूछा कि उसके अंदर कौन सी बुरी आदतें हैं। वह बोली कि उसके अंदर कोई बुरी आदत नहीं है। ना ही वह चोरी करती है..ना तो किसी को गाली देती है और ना ही किसी का बुरा चाहती है। थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोली कि हां उसके अंदर कुछ बुरी आदतें हैं जिन्हें वह शीघ्र दूर करना चाहती है। जब वह किसी दिन छह घंटे से ज्यादा सो लेती है तो घरवाले उसे ज्यादा सोने की गंदी आदत कहकर ताने देते हैं। जब वह घूमना चाहती है और अपना पसंदीदा म्यूजिक प्ले करके नाचना चाहती है तो उसे बिगड़ैल लड़की बोलते हैं। मेरी सहेली को भी लगता है कि ये उसकी बुरी आदतें हैं जिससे सभी नाराज हो जाते हैं, औऱ उसे अपनी इस आदत को जल्द छोड़ देना चाहिए। 

आज के समय में हम यह ठीक से तय ही नहीं कर पाते कि हमारे अंदर क्या अच्छी और क्या बुरी आदते हैं। मेरी सहेली घूमना, म्यूजिक सुनना और जी भर के सोना अपनी बुरी आदतों में मानती है क्योंकि उसके घरवालों को यह पसंद नहीं है। क्या सच में यह बुरी आदत है जो वह खुद को खुश रखने के लिए करती है।

इसके बाद मैंने खुद का आकलन किया कि मेरे अंदर बुरी आदतें क्या हैं। उफ्फ...भरमार है मेरे अंदर बुरी आदतों की। लेकिन मैं यह ठीक से तय कर पा रही हूं कि मेरे अंदर कि बुरी आदतें वाकई में बहुत बुरी हैं। जिसका खराब असर मुझ पर उसी वक्त पड़ता है जब मैं इसे करती हूं।

दिन हो या रात जब मैं बेड पर लेटी हुई सोने या आराम के मूड में होती हूं तब सच में मैं आराम के मूड में नहीं होती। लेटकर मोबाइल पर इंटरनेट चलाना, खास दोस्तों से चैट करना, उनकी शायरी पर वाह करना, यू ट्यूब पर वीडियो देखना दुनिया के तमाम सुखद कामों में से एक है। सोने से पहले मैं सिर्फ यह सोचकर इंटरनेट चलाती हूं कि दस मिनट के बाद बंद कर दूंगी और सो जाऊंगी। लेकिन यह न्यू ईयर रिज्योलूशन की तरह होता है अपना यह प्रण अगले ही पल टूट जाता है औऱ जब मोबाइल की घड़ी पर निगाह जाती है तो रात के एक या दो बज गए होते हैं, मतलब मैं एक से दो घंटे इंटरनेट पर जाने क्या करती रही। फिर नींद इस कदर भागती है कि करवट बदलते हुए रात बीतती है। नींद आती भी है तो इस तरह कि सोए होने के बाद भी सब पता चल रहा होता है कि कहां से कौन सी आवाज आ रही है। सुबह उठने पर सिर इतना भारी रहता है कि अपने आप को कोसने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं रहता।

मेरी बुरी आदतों में से एक आदत यह भी है कि मैं लोगों से बहुत जल्दी अटैच हो जाती हूं। उनसे उम्मीदें रखती हूं। उनसे अपनी हर तरह की समस्याएं शेयर कर देती हूं। उनसे बातें करती हूं। लोगों की आदी हो जाती हूं। यह जानते हुए भी कि लोगों का रूख हवा की तरह बदलता है। वे मेरी शेयर की गई बात को अपने खाली टाइम में दूसरों से बढ़ाचढ़ा कर बताते हैं और चटकारे लेते हैं। मुझे अपने फेसबुक मित्रों से भी कोई उम्मीद नहीं रहती लेकिन फिर भी कोई न कोई उम्मीद रहती है कि ये मुझे कभी ब्लॉक या अनफ्रेंड नहीं करेगा। लेकिन जब जान पहचान का फेसबुक मित्र बिना किसी वजह के अनफ्रेंड कर देता है तो फिर वह किसी सदमें से कम नहीं होता।

मेरे अंदर या फिर हम सभी के अंदर ऐसी ना जाने कितनी बुरी आदतें होती हैं जिससे हम सिर्फ अपना खुद का नुकसान करते हैं और यह ठान कर नुकसान करते हैं कि हां देखो हम अपना नुकसान कर रहे हैं। इस तरह की आदतें बहुत बुरी होती हैं गाली देने से ज्यादा, चोरी करने से ज्यादा और किसी से जलन का भाव रखने से कहीं ज्यादा। क्यों कि जब खुद से प्यार होगा तभी बाकी सब भी होगा। अपने आप से महत्वपूर्ण भी भला कुछ होता है दुनिया में।

तुम्हारा गिफ्ट नहीं लूंगी मैं..



सुनो, जब तुम सिगरेट पीते हो न तो धुएं को नाक से मत निकाला करो। एकदम मजदूर लगते हो तुम।

-अरे, मैं मजदूर लगता हूं तुमको? मतलब क्या है तुम्हारा?

मेरे घर काम करने जब मजदूर आते हैं तो वे बीड़ी पीकर धुआं नाक से ही निकालते हैं। मैंने बचपन से सारे मजदूरों को नाक से धुआं निकालते देखा है। इसलिए तुम्हें मना कर रही हूं।

-तुम्हें तो एक दिन सिगरेट मैं ही पीना सीखाउंगा।
क्यों, यह बुरी चीज है इसलिए?

-नहीं, मुझे सिर्फ यही एक चीज पता है इसलिए। मैं इस बात में बेहद यकीन रखता हूं कि कोई इंसान जब किसी से कोई चीज सीखता है तो वह उसे ताउम्र याद रखता है।

ये लाइफ टाइम गिफ्ट होगा मेरा तुम्हारे लिए।

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

परदेश में रहने वालों, मां बहुत रोती है...



पिछली दीवाली पर घर नहीं गई। एक परीक्षा अटका था। मां का वही हाल हो रहा था जो ऑपरेशन थिएटर में मरीज का होता है। हाल सबको पता होता है लेकिन उसे कोई देख नहीं पाता। जब खबर एकदम पक्की हो गई कि घर नहीं जा पाऊंगी तो मां पकवान बनाते-बनाते ही सिसक-सिसक को रोने लगी। दादी ने घर के एक कोने से फोन करके यह बात बतायी।

घर की बाकी औरतों को उतना फर्क नहीं पड़ता जितना मां को पड़ता है कि उसकी लाडली लाडला त्योहार में घर नहीं पहुंच पाया। मां फोन पर बताती है कि छोटे चाचा का बित्ते भर का लड़का एक घंटे के भीतर सात दही बड़े खा चुका है और फिर से रो देती है तो लगता है कि यहीं किराए के कमरे में मां से बात करते-करते ही दही बड़े छानने बैठ जाएं और ठूंस-ठूंस कर खाकर मां को दिखाएं ताकि उसके जितने आंसू गिरे सब वापस उसकी आंखों में चले जाएं।

सुबह-सुबह नहाकर पूजा-पाठ और मंत्र पढ़ने का कोई टाइम फिक्स नहीं है। लेकिन नौ बजकर पांच मिनट पर नियमित एक झूठ बोलने का टाइम फिक्स है। नौ बजकर पांच मिनट पर रोज सुबह मां का फोन आता है...हां मेरी मां का फोन आता है। सबसे पहला सवाल वो यही दागती हैं कि खाना खायी कि नहीं। शहर में तो इस टाइम कोई सो कर भी नहीं उठता और मैं नाश्ता छोड़ सीधे खाना कैसे ढकेल लूंगी। मां को भी यह बात पता है फिर भी नहीं पता है। उनके पूछते ही मैं शुरू हो जाती हूं..हां मां सेम की सब्जी, घी लगाकर तीन रोटी, उसके बाद दाल फ्राई के साथ चावल खायी हूं। तीन रोटी...मां बोलती है तीन रोटी क्यों खायी। तीन रोटी न तो खाया जाता है न किसी को दिया जाता है..चार रोटी खाया करो। 

मां जैसे बचपन में किसी डरावने आदमी के आ जाने का भय दिखाकर एक कटोरा दूध गटका देती थी आज भी वही भय दिखाती है खाना खिलाने के लिए। बस अंदाज थोड़े अलग होते हैं। देख तेरे बड़े पापा कि बेटी खा-पीकर कैसे सेठानी की तरह हट्ठी कट्ठी हो गई है। एक तुम्हारा शरीर है थुलथुल सा। जैसे कि पूरे शरीर में हवा भरी हो। अरे जवानी में यह हाल है तो बुढ़ापा भी तीस में ही दिखने लगेगा।

सिर का एक बाल सफेद हो गया है मेरे। मतलब सिर्फ एक ही बाल सफेद हुआ है। सिर्फ एक बाल आउट ऑफ अनगिनत बाल। मां को यह बात मैंने फोन पर बताया तो उस रात वह सो नहीं पायी इस चिंता में कि सफेद बालों वाली लड़की से बियाह कौन करेगा। मां सुबह फोन करके मुझे घर बुलाने लगी। मैंने बोला-अचानक क्यों बुला रही हो, ऐसी कौन सी आफत आ गई...मां बोली एक हफ्ते तक तुम्हारे बालों की जड़ों में तेल लगाएंगे तो बालों की सफेदी रूक जाएगी।

सिर्फ त्योहार पर ही घर न जाने पर मां नही रोती। जब भी वह बुलाती है दुलारने के लिए, लाइफबॉय साबुन लगाकर जाड़े भर का कान के ऊपर जमा मैल छुड़ाने के लिए, गर्म रोटियां और मट्ठा साग खिलाने के लिए...मना करने पर रो देती है..ना जाने पर रो देती है...मां रो देती है।

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

शादी के डर से बड़ा कोई डर नहीं था....



आधी रात बाद किसी के सुबक-सुबक कर रोने की आवाज आ रही थी। मैं उठकर बैठ गई। कमरे की लाइट जलाकर देखी तो मेरी नई रूम मेट तकिए से मुंह छुपाये रो रही थी। मैंने उसे हिलाया और पूछा कि क्यों रो रही हो। वह कुछ नहीं बोली। बार-बार पूछने के बाद भी वह कुछ नहीं बोली। मैं काफी देर तक उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर बैठी रही। अंत में उसने अपना रोना बंद करते हुए मुझे सो जाने को कहा, मैं वापस आकर सो गई।

कुछ दिन पहले ही हॉस्टल के मेरे कमरे में नई रूम मेट आयी। उस दिन अपना परिचय देते हुए उसने सिर्फ इतना बताया कि मुखर्जी नगर से सिविल सर्विस की कोचिंग पूरी करने के बाद वह इलाहाबाद रूम पर बैठकर तैयारी करने आयी है। सुल्तानपुर की रहने वाली है।

बात थोड़ी हजम नहीं हो रही थी...लोग इलाहाबाद से दिल्ली जाते हैं और वो दिल्ली से इलाहाबाद। मैं यह बात सोच ही रही थी कि वह फिर बोली- मैं इलाहाबाद एक परीक्षा देने आयी थी..यह शहर मुझे जम गया तो मैंने यहीं से तैयारी करने की सोच ली। अब शायद बात मुझे हजम हो गई थी।
हफ्ते भर तक सिर्फ इतना ही जानती थी मैं उसे। वह मार्केट से एक पैकेट दलिया और आधा किलो टमाटर, कुछ मिर्च खरीदकर लायी थी। दोपहर में दलिया बनाती और रात के खाने में भी उसे ही खाती। आधा किलो टमाटर और एक पैकेट दलिया के अलावा उसने अगले बारह दिनों में कुछ नहीं खरीदा। 

हॉस्टल की बाकी लड़कियों से उसका कोई लेना देना नहीं था। वह किसी से बात नहीं करती और अपने आप में ही रहती। पंद्रह घंटे पढ़ाई करती, पांच घंटे सोती...और बाकी के बचे समय में नहाना, खाना और अन्य काम करती। यही उसका शेड्यूल था।

अगली सुबह मैंने उससे रात में रोने की वजह पूछी। वह कुछ नहीं बोली..एक बार मेरी तरफ देखी और अपनी नजरें नीचे झुका ली। फिर मैंने दोबारा पूछने की कोशिश नहीं की। शाम को उसने बताया कि उसने पीसीएस मेंस का एक्जाम दिया है। रिजल्ट आने वाला है। जैसे बाकी लोगों को रिजल्ट आने से पहले डर लगता है, उसे भी लगना चाहिए लेकिन नहीं लग रहा। उसे कोई और डर खाए जा रहा है। शादी के लिए लड़के वाले उसे देखकर गए हैं। वह उन्हें पसंद भी आ गई हैं। अगर शादी तय हो गई तो वह कुछ नहीं कर पाएगी। घर वालों को समझाने के लिए अब कोई शब्द, कोई वाक्य कोई बात नहीं बची थी।

वह नौकरी से पहले शादी नहीं करना चाहती थी। उसके संघर्ष की भी एक दास्तां थी। वह उसमें किसी और को शामिल नहीं करना चाहती थी। वह अपने पैसे को एन्ज्वाय करना चाहती थी अकेले। वह अपने मेहनत का सुखद परिणाम आने तक अकेले रहना चाहती थी। शादी के भय से वह हर रात पढ़ाई करके जब सोने के लिए लेटती तो रोते-रोते सो जाती।