शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

हम काले हैं तो क्या हुआ हुनर वाले हैं....



लड़की बदसूरत है और चार फिट से कम हाइट वाली है। हॉस्टल की मॉडर्न लड़कियां उसे कम पसंद करती हैं या यूं कहें कि पसंद ही नहीं करती है। वह लड़की कोई काम फटाफट कर लेती है..बर्तन मांजते या फिर सब्जी काटते वक्त उसकी कलाई किसी घरेलू महिला से कम नहीं दिखती है। उम्र में भी वह हॉस्टल की बाकी लड़कियों से काफी बड़ी है।

सुबह जल्दी जगती है, बाकी लड़कियों से पहले नहा लेती है। हॉस्टल की बालकनी में गमले में लगे तुलसी को रोजाना दो लोटा जल चढ़ाती है। अन्य लड़कियां उसे कहती हैं कि उम्र में काफी बड़ी दिखती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसकी शादी न लग रही हो और अच्छे वर के लिए ये रोजाना तुलसी को जल चढ़ाती है। लड़कियों के पास शायद इतनी फुर्सत होती है कि वे बालकनी में जगह-जगह खड़ी होकर उसके बारे में कयास लगाती रहती हैं।

कल हॉस्टल की ही एक लड़की का बर्थडे था। लड़की ने अपनी फ्लोर की सभी लड़कियों को बुलाया साथ ही उस बदसूरत लड़की को भी बुलाया। केक कटने के बाद खाने-पीने का दौर शुरू हुआ। उस बदसूरत लड़की ने फटाफट सबको प्लेट में खाने वाले आयटम परोसे। सबको प्यार से खिलाया। गुलाब जामुन उठाकर कुछ लड़कियों को खिलाते हुए सेल्फी भी ली। खाने-पीने के बाद नाच-गाने का सिलसिला शुरू हुआ। कुछ लड़कियों ने शरमाते हुए डांस किया...जिसने खुल कर डांस किया वो भी ऐसे जैसे नौसिखिए हों...सबने एक दूसरे के डांस की झूठी तारीफ की और ठहाके लगाए। इस दौरान बदसूरत लड़की को किसी ने डांस करने के लिए कहा, पहले तो लड़की ने ना कहा लेकिन दोबारा कहने पर मान गई।

बदसूरत लड़की ने डांस करना शुरू किया...बाकी लड़कियां किनारे हट गईं...क्या डांस किया उस लड़की ने। सब मुंह फाड़े हुए माशाअल्लाह कहती रह गईं। गाना खत्म हुए और लड़की के कदम रूक गए। लेकिन बाकी लड़कियों ने उसे रूकने नहीं दिया...ऐसा डांस थर्ड फ्लोर की किसी भी लड़की को नहीं आता था...बदसूरत लड़की ने एक के बाद एक तीन गानों पर डांस किया और सभी लड़कियों को झूमने पर मजबूर कर दिया। हॉस्टल की सभी लड़कियों ने उस लड़की की बहुत-बहुत तारीफ की। कुछ ने उससे डांस सिखाने का वादा भी लिया। लड़की खुश हो गई। अब उसका कमरा खाली नहीं है। कोई न कोई लड़की उसके कमरे में हर वक्त बैठी दिख रही है। हॉस्टल की लड़कियों के लिए उसकी बदसूरती खत्म हो गई। लड़की खुश है। प्रतिभा हो तो ऐब छिप जाते हैं। वह किसी लड़की से ऐसा कह रही थी। मैंने उससे कहा-सांवला होना, या खूबसूरत नहीं होना कोई ऐब नहीं होता।

सब्जी ए..सब्जीए!



कॉलोनी और मुहल्लों में घूमकर सब्जी बेचने वाले सब्जी वालों की अपनी एक खास स्टाइल होती है। उनके आवाज लगाने के तरीके को पहचान कर आंटियां घर से निकलकर गेट पर आ जाती हैं कि उनका सब्जी वाला तो आ गया।

मुहल्ले कॉलोनी में तो सुबह से लेकर दोपहर तक वैसे तो कई सब्जी वाले आते हैं लेकिन हर घर में हर एक आंटी का अपनी पसंद के ठेले वालों से सब्जी खरीदना फिक्स रहता है। कुछ आंटियों का तो ठेले वालों से उधारी भी चलती है। फिर भी सब्जी बेंचने वालों में इस बात का कॉम्पटिशन रहता है कि वे मुहल्ले में एक-दूसरे से जल्दी पहुंचे।

घूमकर सब्जी बेचने वालों में कुछ बड़े सब्जी वाले होते हैं तो कुछ छोटे। कुछ ठेले वाले सिर्फ सीजन की ही सब्जियां बेचते हैं इससे ज्यादा उनके पास कुछ नहीं रहता। ऐसे ठेले वालों को कॉलोनी की आंटियां ज्यादातर शाम को भाव देती हैं क्यों कि शाम में एक-दो ठेले वाले ही सब्जी बेचने आते हैं औऱ सस्ते में बेंचकर लौट जाते हैं। दूसरे किस्म के ठेले वाले सीजनल सब्जियों के अलावा गोभी, गाजर और पत्तागोभी जैसी सब्जियां भी बेचते हैं जो काफी महंगे होते हैं, वे सब्जियों को हाथ नहीं लगाने देते और खुद उठाकर तौलते हैं। तीसरे तरह के ठेले वाले महंगी और सस्ती सब्जियों के साथ फल भी बेचते हैं । वे बाकी दोनों सब्जी वालों से कुछ ज्यादा इतराते हैं।
सुबह सब्जी वाले की ऊंची आवाज सुनकर ही नींद खुलती है। वह कॉलोनी में घुसते ही जोर-जोर से बोलने लगता है..सब्जी ए..सब्जीए...। उसकी बुलंद आवाज सुनकर ऐसा लगता है मानों वह सब्जी ए..सब्जीए नहीं बल्कि बोल रहा हो..सोने वालों जाग जाओ।

पचास लड़कियों वाला अपना हॉस्टल ज्यादातर सब्जी ए..सब्जीए से सब्जी खरीदना पसंद करता है। बाकी हरी सब्जी है...सब्जी और फल ले लो..कहकर सब्जी बेचने वाले ठेले वाले लाइनअप होते हैं। सब्जी ए..सब्जीए कहकर सब्जी बेंचने वाले को लड़कियां ज्यादा पसंद करती हैं..वजह वह लड़कियों को बताता रहता है कौन से जगह जाने वाली कौन से ट्रेन की टाइमिंग क्या है..कौन सी ट्रेन में राहत रहती है..कौन सी ट्रेन का कितना किराया है...इसके साथ ही कौन सी सब्जी में क्या डालकर पकाया जाए कि वह ज्यादा स्वादिष्ट बनें। और अंत में यह भी कह देता है कि बहन यदि खुल्ले पैसे नहीं हैं तो कल दे देना। इतना प्रोपेगेंडा काफी होता है लड़कियों के दिल में जगह बनाने के लिए।

ऐसा नहीं है कि बाकी के ठेले वालों से लड़कियां सब्जी नहीं खरीदती लेकिन उनके साथ सब्जी लेना और पैसे देना भर मतलब रहता है। कभी-कभी खुल्ले पैसे न रहने पर ठेले वाले मानते नहीं और मकानमालिक से खुल्ले पैसे लेकर ठेले वालों को देना पड़ता है।
ठेले वालों के आने से घर बैठे सब्जियां मिल जाती हैं और कॉलोनी में रौनक बनी रहती है।

बुधवार, 13 जुलाई 2016

पेन कीमती है बाबू !



आपने कभी बैंक में, दफ्तर में, पोस्ट ऑफिस में या फिर क्लास में किसी से पेन मांगकर अपना काम चलाया है। अगर कभी ऐसी जरूरत पड़ी हो तो आपने देखा होगा जिस भाई या बहन जी से आपने पेन मांगी थी वे तब तक आपके सिर पर नाचते रहेंगे जब तक आप उन्हें उनकी पेन वापस कर दें। 

इस दौरान वे यह भी देखेंगे कि आप कौन सा फॉर्म भर रहे हैं, आपने उनकी पेन से कितनी लाइनें लिखी हैं। वे गौर से देखेंगे कि उनके पेन की रिफिल में पड़ी स्याही कहां से कहां खिसक कर आ गई। उफ्फ..आप माथा पकड़ लेंगे कि किस मुहूर्त में घर से निकले थे कि पेन रखना भूल गए।
बात आज की ही है। लाइब्रेरी में बैठी कुछ लिख रही थी कि अचानक मेरे पेन की स्याही खत्म हो गई। घर से जल्दबाजी में निकली थी और सिर्फ एक ही पेन साथ लेकर निकली थी। अब उसकी स्याही खत्म।  

अपनी बगल में बैठे एक लड़के से मैंने कहा-भाई कोई एक्स्ट्रा पेन हो तो मुझे दे दो, मेरे पेन की स्याही खत्म हो गई है। वह बोला, मेरे पास एक हरी, एक लाल, एक काली और एक नीली पेन है। मैंने सोचा लड़का मुझे ऑप्शन दे रहा है कि मेरे पास इतने रंगों की पेन है तुम्हें कौन सी चाहिए। लेकिन लड़का फौरन बोला-इन चारों पेन का इस्तेमाल मैं एक साथ कर रहा हूं। काली पेन से गणित के सवाल लिख रहा हूं, नीली पेन से सवाल हल कर रहा हूं, लाल पेन से फॉर्मूला लिख रहा हूं और हरी पेन से फॉर्मूले को बॉक्स में कर रहा हूं। इतना कहकर वह अपने काम में लग गया।

मैं बिना पेन की लड़की बैठे-बैठे किताबें पढ़ने लगी। कोई और रास्ता नहीं सूझ रहा था मुझे। लाइब्रेरी के आसपास कोई ऐसी दुकान भी नहीं थी जहां से पेन खरीदी जा सके। मैं लाइब्रेरी में बैठे सभी लोगों पर नजर दौड़ा रही थी कि शायद कोई जान-पहचान का मिल जाए और मुझे पेन मिल जाए। लेकिन ऐसा कोई नहीं दिखा। जिस वक्त मैं लोगों पर नजर दौड़ाई उस वक्त कोई पढ़ते हुए नहीं बल्कि सभी कुछ ना कुछ लिखते हुए दिखाई दिए। सिर्फ मेरे ही पास पेन नहीं थी बाकी सब कलम  के धनी थे। 

मैं बैठे-बैठे किताबें पढ़ने लगी। थोड़ी देर बाद बगल में बैठा वह लड़का बोला-आप चाहें तो मेरी हरी वाली पेन ले सकती हैं। मैंने उस पर एहसान वाली दृष्टि डाली और उसका पेन लेकर लिखने लगी। मुश्किल से दस मिनट बीते होंगे कि उसने अपनी पेन वापस मांग ली। उस वक्त मुझे ऐसा लगा जैसे पेन कि कीमत अचानक और उसी दिन बढ़ गई हो। कोई अपनी पेन देना ही नहीं चाह रहा था..जिसके पास चार थी वो भी एक साथ इस्तेमाल करने का दावा कर रहा था।

लड़के की पेन वापस देने के बाद मैं फिर से किताबें पढ़ने में जुट गई। इसी बीच मेरे बगल की दूसरी सीट पर एक लड़की आकर बैठी। उम्मीद की एक किरन जगी। मैंने उससे पूछा-बहन आपके पास एक्स्ट्रा पेन होगी क्या। मेरे पेन की स्याही अचानक खत्म हो गई औऱ मुझे कुछ लिखना था अभी। वह मुझे ऐसे देखी जैसे मैंने उससे कहा हो-बहन तुम्हारे घर घी है क्या, मुझे थोड़ा सा दे दो, गाजर का हलवा बनाना है। लड़की ने मुझे पेन नहीं दिया।

मैं फिर से किताबें पढ़ने लगी। लेकिन मन नहीं लग रहा था। उस तंगहाली में मैं पेन हासिल करने का प्रयास कर रही थी लेकिन मेरी सारी कोशिशें नाकाम हो रही थीं। मैं पेन के बिना बेचैन थी। अखबारों में पढ़ी थी कि ट्रेन में सफर करते वक्त किसी महिला ने अपने बच्चे की खातिर दूध के लिए सुरेश प्रभु को ट्वीट किया तो दूध उपलब्ध हो गया। मैं किस प्रभु को ट्वीट करूं कि इस लाइब्रेरी में मुझे कोई पेन उपलब्ध करा दे। सचमुच, आज पेन के लिए जो बेचैनी थी वो मैं ही समझ सकती हूं। पेन की कीमत आज पता चल गई मुझे।