बुधवार, 6 जनवरी 2016

जब बोरियत हो जाए!



यह लेख मैं अपने बोरियत के उन क्षणों में लिख रही हूं जिसे सिर्फ बुरी तरह से (घायल नहीं) बोर होने वाला व्यक्ति ही समझ सकता है। मुझे लगता है कि कभी- कभी हम ऐसी बोरियत के जिम्मेदार खुद ही होते हैं। लेकिन यह बात जब औरों को भी पता हो और आप उनसे दो-चार बातें करके अपना जी बहलाने की कोशिश करना चाहें तो वे आपको ऐसी बातें याद दिलाएंगे मानों आपने दुनिया का सबसे बड़ा पाप किया हो और कई तीर्थ स्थलों की यात्रा के बाद भी शायद आपका यह पाप थोड़ा कम हो। 

बहरहाल, इस परिस्थिति में ऐसे लोगों से बात करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। वक्त कोई भी हो बुरा या फिर बोरियत वाला, घरवालों की याद सबसे ज्यादा आती है। सुबह से चार बार हम मां को भले ही फोन कर चुके हों लेकिन बोरियत के समय जब पांचवीं बार फोन करके यह पूछते हैं कि बताओ न मां किस चीज का अचार बना रही हो तो उस समय मां भी हमारी एंटी हो जाती है और यह कहते हुए कि तुम्हारी हड्डियों का अचार बना रही हूं, थोड़ा टाइम लगेगा गलने में। छुट्टी मिले तो आकर ले जाना। नालायक कहीं की, सुबह से पांच बार फोन कर चुकी है, अरे ज्यादा पैसा हो गया है क्या फोन में। नौकरी छोड़कर मजा आ रहा है ना। अब बोर हो या फिर महफिल सजाओ, फोन पटक देती है जैसे उस समय फोन पटकना ही उनका सबसे सही निर्णय हो।

जब हम घर से दूर किसी शहर में अकेले रहते हैं और बोर होते हैं उस समय सिर्फ मन ही नहीं दिल-दिमाग, आंख-कान सब कुछ बोर होने लगता है। सनी लियोनी की फिल्में देखना भी चुकंदर खाने के बराबर लगता है (चुकंदर मैं आंख बंद करके खाती हूं, जैसे जहर खाते हैं)। हां उस वक्त संजीव कपूर का खाना-खजाना देखना जरूर अच्छा लगता है। बोरियत के क्षणों में यह शो देखते हुए कुछ इस कदर भूख लगती है जैसे इस वक्त कोई हड्डी भी परोस दे तो हम चबा जाएं यह वक्त काटने की खातिर।

हम किचन में रखा एक-एक डिब्बा टटोलते हैं कि किसमें सूजी, किसमें बेसन वगैरह वगैरह रखा है। लेकिन आपको मालूम हो की ठीक उसी वक्त हम दुनिया के सबसे बड़े कंगाल भी होते हैं। डिब्बे में बेसन एक चम्मच तो सूजी सिर्फ दो चम्मच बची होती है। जिससे कुछ भी तैयार किया जाए तो घर के कुत्ते का भी पेट ना भर पाए।

हम एक प्याज औऱ टमाटर, मिर्च काटते हैं और सूजी, बेसन को उसमें मिला कर पेस्ट बना लेते हैं। फिर भी यह पेस्ट कटोरी में इतना कम दिखता है कि वह अपने को अपमानित महसूस करती है। हम पेस्ट को और बढ़ाने के लिए उसमें थोड़ा आटा मिलाते हैं एक आलू भी काट लेते हैं, थोड़ा मैदा भी मिला लेते हैं। कान खुजाते हुए किचन में घूमते हैं और जो भी खाने में ठीक लगे मिलाकर एक कटोरी पेस्ट तैयार कर लेते हैं। इसके बाद उस पेस्ट को तवे पर ऑयल लगाकर रोटी की तरह फैला लेते हैं। एक-दो बार इसे उलटते-पलटते हैं और प्लेट में लेकर टीवी के सामने खाने बैठ जाते हैं। कुछ देर बाद अचानक ऐसा लगता है कि टीवी में से संजीव कपूर अपन से पूछता है कि यह कौन सी रेसिपी खा रही हो बहन। मुझे भी बनाना सीखा दो। हमें अपने पर गर्व महसूस होता है कि इन बोरियत के क्षणों में हमने नई रेसिपी ईजाद कर ली। कभी-कभी घर में कुछ भी नहीं होता। हम सिर्फ डिब्बा खंगालते और पटकते रह जाते हैं। अगर किचन की टोकरी में टमाटर और मटर भी दिख गई तो हम उसे छत पर बैठकर नमक के साथ पैर हिलाते हुए खाते हैं, जैसे छोटे बच्चे खाते हैं, जो कभी बोर भी नहीं होते हैं। बोरियत के क्षणों को काटने का एक तरीका यह भी तो है ना, कि नहीं?

उम्मीद और कुछ नहीं!



जब वह मॉर्निंग वॉक पर निकली उस समय थोड़ा अंधेरा था। कुछ औरतें कारखानों के आसपास चौड़ी सड़कों पर टहलने के लिए निकलीं थी। कुछ पुरुष भी आपस में बात करते हुए जा रहे थे। थोड़ा अंधेरा जरूर था लेकिन उसे डर नहीं लग रहा था। अगर वह पांच मिनट भी कहीं रूक जाती तो उसी रास्ते पर अंधेरा छंट जाता औऱ सुबह हो जाती। लेकिन उसे पता था कि यह सुबह ही है, बस थोड़ा सा अंधेरा है।

वह कान में इयरफोन लगाए भक्ति गाने सुनते हुए जा रही थी। कुछ आगे बढ़ी तो उसे दूर से ही रास्ते में कोई खड़ा दिखाई दिया। वह जब उसके पास पहुंची तो देखा कि वो वही लड़का है जो रोज उसे टहलते हुए देखा करता है। कभी अपने कुत्ते को टहलाते हुए मिलता है तो कभी किसी दोस्त के साथ टहलते हुए दिख जाता है। वह कई दिनों से उस लड़के को देख रही थी, लेकिन सिर्फ दूर से ही।

वह जैसे ही आगे बढ़ी लड़का उसके पीछे-पीछे चल दिया। अब सुबह हो गई थी और उसे डर नहीं लग रहा था। उस दिन वह एक सुनसान रास्ते पर अकेले टहल रही थी, जिधर अमूमन कोई नहीं जाता था। जब वह सड़क पर टहलते हुए एक मोड़ पर आकर रूकी तो लड़का अचानक उसके सामने आ गया। वह बेहद गोरा था और उसके होंठ लड़कियों की तरह गुलाबी थे। यह ठीक वैसा ही था जैसे मैट्रीमोनियल में वर/वधू चाहिए के लक्षण लिखे होते हैं। इस तरह से अपने सामने अचानक उसको देखकर उसका दिल धक धक करने लगा लेकिन वह डरी नहीं।

अब वह उस रास्ते पर टहलने लगी थी जिधर काफी लोग टहल रहे थे और व्यायाम कर रहे थे। लेकिन उस लड़के का चेहरा और गुलाबी होठ उसके दिमाग में बस गया था। वह किसी राजा के पुत्र के जैसे दिख रहा था। अद्भुत था उसका चेहरा। अलग-अलग रास्तों पर टहलते हुए वह उससे किसी न किसी मोड़ पर उससे टकरा जा रही थी। लड़का उसे पहले एकटक देखता और बिना कुछ बोले आगे निकल जाता। कई दिन पहले भी उसके साथ ऐसा हो चुका था लेकिन आज वाला कांड कुछ ज्यादा ही रोमांचक और फिल्मी था।

रास्ते में उसने पीले कनेर का एक फूल तोड़ा और उसे अपनी मुट्ठी में बंद कर टहलने लगी। वह सोच रही थी कि इस बार अगले मोड़ पर वह लड़का मिला तो उसे वह पीले कनेर का फूल जरूर देगी। यह सोचते हुए वह आगे बढ़ रही थी कि वह लड़का फिर से उसे मिल गया। लड़के ने उसे देखा और उसैन वोल्ट वाली रफ्तार से आगे बढ़ गया।

पीला कनेर उसके हाथ में ही रह गया। वह सोचती रही कि जब उसे पीला कनेर देगी तो कहेगी देखो इस फूल में मेरी हथेली की गर्माहट है। इसे जरूर महसूस करना। लेकिन यह मौका वह चूक गई थी। पीला कनेर अपनी मुट्ठी में दबाए वह इस उम्मीद से लौट आयी कि कल वह उस लड़के को एक फूल जरूर देगी। जो राजा के पुत्र जैसा दिखता है, लड़कियों के जैसा गोरा है और जिसके होंठ गुलाबी हैं।

सोमवार, 4 जनवरी 2016

इश्क जहर है?



जिंदगी में प्यार कितने दफा होता है उसे नहीं मालूम था। उसका मानना था कि उसकी तरह यह किसी को भी नहीं मालूम होता। प्यार के नाम पर दो-तीन लड़कों ने उसे धोखा दिया था। उसका बदला लेने के लिए उसने दो लड़कों से प्यार का नाटक किया लेकिन नाटक-नाटक में ही सच्चा प्यार हो गया उसे। इस बार जब दोनों लड़कों ने धोखा दिया उसे तो वह अगम कुमार निगम के बेवफाई वाले गाने सुनकर आंसू बहाने लगी। इस दौरान उसने अल्ताफ रजा के भी दुख भरे गाने सुने। गाने की एक-एक लाइन पर उसने इस कदर आसूं बहाए मानों सारे गाने उसके लिए ही लिखे गए हों।
उस शहर से उसका मन ऊब गया था। वो पूरा शहर उसे उन लड़कों की तरह ही बेवफा दिखने लगा। उसे लगा अब एक दिन भी उस शहर में रुकेगी तो वह जीते जी मर जाएगी। उसने उस शहर को छोड़ने का फैसला किया और नए शहर में जा बसी।
इस शहर में रहते हुए उसे सिर्फ इस बात का डर था कि वहां उसे किसी से प्यार ना हो जाए। वह जब भी किसी काम से बाहर निकलती तो किसी लड़के की तरफ देखती न थी। प्यार में जो धोखा उसे मिला था वह अब उसे हर लड़के के चरित्र में दिखने लगा था। वह इन सब चीजों से बाहर निकलना चाहती थी। एक रात उसने अपनी डायरी में मोटे अक्षरों में लिखा इश्क जहर है, उसने इसे खाया लेकिन पूरी तरह से मरी ना ही अब जिंदा है। जब भी वह अपनी डायरी में कुछ लिखने बैठती प्यार, मोहब्बत में धोखा, बेवफाई के अलावा उसकी कलम कुछ और नहीं लिख पाती थी। उसकी मां फोन पर उसे समझाया करतीं कि वह ध्यान किया करे।
मां की बातों से थककर उसने सुबह जल्दी उठकर खुली हवा में टहलने का निर्णय लिया। पहले दिन जब वह टहलने निकली तो रास्ते में एक लड़का अपने घर के गेट पर खड़ा दिखा। उसने लड़के को देखा लेकिन उसका चेहरा नहीं देखा। वह अपना ध्यान तनिक भी उधर लगाए आगे बढ़ गई। अगले दिन सुबह जब वह टहलने निकली तो लड़का फिर से अपनी गेट पर खड़ा दिखा। इस बार उसका चेहरा भी दिख रहा था। उसने उसे किसी सपने की तरह देखा और आगे चल पड़ी। अब सिलसिला शुरू हो चुका था। जब वह सुबह टहलने निकलती तो लड़का कभी गेट पर खड़ा मिलता तो कभी दूसरी तरफ से दौड़ लगाता हुआ उसकी बगल से गुजरता। वह कभी उसे देखकर मुस्कुरा देता।
अब उसे सुबह टहलना ज्यादा अच्छा लगने लगा था और वह शहर भी। उस दिन सुबह जब वह टहलने निकली तो वह लड़का नहीं दिखा। अगले दिन और कई दिन तक नहीं दिखा। वह उसके लिए परेशान थी, हद से ज्यादा परेशान थी। एक सुबह टहलते हुए उसके दिमाग में ख्याल आ रहा था कि क्या वह उस इश्क के लिए परेशान है जो जहर है।

उसने मुझे किताब दी!



कुछ दिनों पहले मैं पुस्तक मेले में गई थी। वहां से चार किताबें लेकर जब घर लौटी तो खुशी के मारे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे मेरे।

हुआ यूं कि पुस्तक मेले में किताबों के एक स्टॉल पर मैं हिन्दी-उर्दू डिक्शनरी लेने पहुंची। वहां दूकानदार ने कहा कि उसके पास डिक्शनरी तो नहीं है लेकिन कुछ ऐसी किताबें हैं जिसमें कुछ हिन्दी में और फिर वही बात उर्दू में लिखी गई है। उसने मुझे गौर से देखा और बोला कि लेकिन यह किताब वही लोग पढ़ सकते हैं जिन्हें थोड़ी-बहुत उर्दू का ज्ञान हो।

किताब बेचने वाला मुझसे यह जानना चाह रहा था कि मैं हिन्दू हूं या मुस्लिम। मैंने उसे बताया कि मैं हिन्दू हूं लेकिन चूंकि मैंने दो महीने तक उर्दू सीखने का ट्यूशन पढ़ा है और मुझे उर्दू में लिखे कुछ हर्फ समझ में आते हैं इसलिए मैं यह किताब खरीदना चाहती हूं। मैंने उसकी दूकान से दो किताबें उठायी और पैसे देने लगी। पहले तो उस किताब बेचने वाले ने पैसे ले लिए लेकिन थोड़ी ही देर बाद सारे पैसे मुझे वापस कर दिए। यह देखकर मुझे बहुत ताज्जुब हुआ। मैंने कहा- अरे भैया किताब के पैसे तो ले लीजिए। इस पर वह बोला- नहीं यह किताब मैं फ्री में ही आपको दूंगा। 

मैं व्हाट्सएप के आंख फाड़कर देखने वाले इमोजी की तरह उस किताब बेचने वाले को देख रही थी। थोड़ी देर बाद वह बोला कि मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप हिन्दू होते हुए भी उर्दू सीखने की इतनी ज्यादा इच्छुक हैं। हम अपनी तरफ से यह किताब आपको देकर आपकी मदद करना चाहते हैं। अल्लाहताला जरूर आपकी इच्छा पूरी करेगा। मुझे भी उसकी बातें बहुत अच्छी लगी।

पुस्तक मेले से मैंने हजरत मुहम्मद की जीवनी और पवित्र कुरआन शरीफ खरीदा और घर लौट आई। इसी खुशी में मेरे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मैंने दो-चार लोगों से पुस्तक मेले वाला किस्सा शेयर किया। लेकिन लोगों की प्रतिक्रिया यह रही कि फ्री की किताब ही तो मिली है कौन सा बड़ा खजाना हाथ लग गया है। उनकी यह बात सुनकर मेरा मुंह लटक गया। 

सच कहूं तो किताबों की अहमियत सभी को नहीं मालूम होती है। किसी से लिए यह रद्दी तो किसी से लिए नमक की पुड़िया बनाने वाले कागज से कम नहीं होता। मेरे लिए तो किताबें सोना से कम नहीं। मैं तो इसी से मालामाल होना चाहती हूं।

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

हाय रे नया साल!



नए साल को मनाने की प्लानिंग एक तीन पहले ही कर ली हम तीन दोस्तों ने। हमने मिलकर तय किया कि एक जनवरी को हम लोग रामनगर का किला देखने जाएंगे जहां रांझड़ा फिल्म की शूटिंग हुई थी या फिर सारनाथ जाएंगे जहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।

घूमने जाने की खुशी के मारे मन में बुलबुले फूट रहे थे। पूरी रात मैं सपनों में नए साल पर पहनने के लिए डिजाइनर कपड़े छांटती रही। सपना टूटा तो सुबह हो गई थी और एक गिलहरी दरवाजे में बने होल से आकर अंदर कमरे में बैठी थी। मैंने मन ही मन उसे हैप्पी न्यू ईयर विश किया और कमरे का दरवाजा खोला। सूरज पूरब से ही निकला था, ठंड एक दिन पहले जैसी ही थी, आसमान का रंग भी नीला ही था, चिड़ियों की चहचहाअट भी पुरानी ही थी, सप्ताह कई दिन पहले से शुरू था, सब कुछ पुराना था लेकिन एहसास था तो सिर्फ नए साल का।
इसके बाद मैंने अपने दोनों दोस्तों को फोन किया और हमने मिलकर यह तय किया कि हम रामनगर का किला देखने जाएंगे। हमने एक निश्चित समय और स्थान पर मिलने का निर्णय लिया और जाने की तैयारी में जुट गए।

बाथरूम में नहाते समय मैं एक के बाद एक गाने गुनगुना रही थी उसमें आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे भी शामिल था। गुनगुनाते हुए ही मैं बाथरूम से नहाकर बाहर निकली और नए कपड़े पहनकर बाल संवार रही थी कि पहली वाली सहेली का फोन आ गया...मैंने फोन उठाने से पहले यह सोचा कि वह उधर से बोलेगी कि अभी कितना समय लगेगा पहुंचने में। लेकिन हुआ ठीक उल्टा और उसकी बातें सुनकर मेरा मुंह सूज गया। उसने कहा कि उसे तेज बुखार आ गया है और वह हमारे साथ घूमने नहीं जा सकती। मेरी खुशी का सारा खुमार पल भर में ही फुर्र हो  गया। थोड़ी देर बाद दूसरे दोस्त का फोन आया और उसने कहा कि यदि हम तीनों घूमने जाते तो ज्यादा मजा आता। सहेली की बुखार के चलते उसने घूमने की प्लानिंग कैंसिल कर दी। 

दोपहर के एक बज गए थे। जाड़े की धूप में मेरा चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था तभी एक क्लासमेट का फोन आया। उसने कहा कि चलो नए साल पर बाजीराव मस्तानी ही देख आते हैं। दो मिनट में मेरा चेहरा पके टमाटर की तरह कोमल हो गया और मैं रामनगर का किला न देख पाने का मलाल भूल गई। वह बोला कि तीन बजे तक वह मुझे लेने आएगा। चार बजे से मूवी है।
मैं ढाई बजे से ही तैयार होने लगी। वह तीन बजे मेरे घर के बाहर आया और मुझे फोन करके बोला कि एक मिनट रूको जरा पता तो कर लूं कि सिनेमाघरों में बाजीराव मस्तानी का टिकट उपलब्ध है कि नहीं। थोड़ी देर बाद उसने बताया कि सारे टिकट सोल्ड आउट हो चुके हैं और अगला शो सात बजे से है।

मैंने मुंह लटकाकर नए कपड़े उतार दिए और गुस्से में अपने बालों को कुछ इस तरह से तितर-बितर किया जैसे काली मां किसी दुश्मन का वध करने के लिए पूरी तरह से तैयार हों।
इंतजार था तो शाम के छह बजने का ताकि एक अंतिम कोशिश की जाए और सात बजे वाले शो का टिकट मिल जाए और जैसे-तैसे यह नया साल मन जाए। साढ़े पांच बजे दोस्त ने टिकट काउंटर से फोन कर बताया कि सात बजे वाले शो के भी टिकट सोल्ड आउट हो चुके हैं। उस वक्त मेरा चेहरा देखने लायक था लेकिन वहां कोई देखने वाला नहीं था। मैंने जल्दी से इंटरनेट पर अन्य सिनेमाघरों के टिकट चेक किए। लेकिन सभी जगहों पर टिकट बिक चुके थे। सिगरा स्थित आईपी माल के टिकट काउंटर पर फोन किया तो पता चला कि वहां टिकट उपलब्ध है। यह सुनकर हमारी बांझे (जहां कहीं भी होती होगी) खिल गई। मैंने दोस्त को फौरन बताया कि आईपीमाल में टिकल उपलब्ध है। वह बोला कि इस समय तो सिर्फ हनुमान जी ही आईपी माल पहुंचा सकते हैं। शहर में जबरदस्त जाम लगा था और वह एक घंटे से जाम में फंसा था। मैंने सोचा कि तुरंत संकटमोचन जाऊं और ज्योतिषाचार्य लक्ष्मणदास से पुछूं कि महाराज कौन सा ग्रह लगा था आज कि नया साल इतना रूला दिया। लेकिन बनारस के जाम में फंसकर तो मुर्दे भी खड़े हो जाते हैं, मैं कहां जाती अपनी जान गंवाने। यहां तो नये साल का पहला दिन सिर्फ प्लानिंग करके खुश होने और कैंसिल होने पर गुस्सा करने में ही बीत गया।