सोमवार, 4 जनवरी 2016

उसने मुझे किताब दी!



कुछ दिनों पहले मैं पुस्तक मेले में गई थी। वहां से चार किताबें लेकर जब घर लौटी तो खुशी के मारे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे मेरे।

हुआ यूं कि पुस्तक मेले में किताबों के एक स्टॉल पर मैं हिन्दी-उर्दू डिक्शनरी लेने पहुंची। वहां दूकानदार ने कहा कि उसके पास डिक्शनरी तो नहीं है लेकिन कुछ ऐसी किताबें हैं जिसमें कुछ हिन्दी में और फिर वही बात उर्दू में लिखी गई है। उसने मुझे गौर से देखा और बोला कि लेकिन यह किताब वही लोग पढ़ सकते हैं जिन्हें थोड़ी-बहुत उर्दू का ज्ञान हो।

किताब बेचने वाला मुझसे यह जानना चाह रहा था कि मैं हिन्दू हूं या मुस्लिम। मैंने उसे बताया कि मैं हिन्दू हूं लेकिन चूंकि मैंने दो महीने तक उर्दू सीखने का ट्यूशन पढ़ा है और मुझे उर्दू में लिखे कुछ हर्फ समझ में आते हैं इसलिए मैं यह किताब खरीदना चाहती हूं। मैंने उसकी दूकान से दो किताबें उठायी और पैसे देने लगी। पहले तो उस किताब बेचने वाले ने पैसे ले लिए लेकिन थोड़ी ही देर बाद सारे पैसे मुझे वापस कर दिए। यह देखकर मुझे बहुत ताज्जुब हुआ। मैंने कहा- अरे भैया किताब के पैसे तो ले लीजिए। इस पर वह बोला- नहीं यह किताब मैं फ्री में ही आपको दूंगा। 

मैं व्हाट्सएप के आंख फाड़कर देखने वाले इमोजी की तरह उस किताब बेचने वाले को देख रही थी। थोड़ी देर बाद वह बोला कि मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप हिन्दू होते हुए भी उर्दू सीखने की इतनी ज्यादा इच्छुक हैं। हम अपनी तरफ से यह किताब आपको देकर आपकी मदद करना चाहते हैं। अल्लाहताला जरूर आपकी इच्छा पूरी करेगा। मुझे भी उसकी बातें बहुत अच्छी लगी।

पुस्तक मेले से मैंने हजरत मुहम्मद की जीवनी और पवित्र कुरआन शरीफ खरीदा और घर लौट आई। इसी खुशी में मेरे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मैंने दो-चार लोगों से पुस्तक मेले वाला किस्सा शेयर किया। लेकिन लोगों की प्रतिक्रिया यह रही कि फ्री की किताब ही तो मिली है कौन सा बड़ा खजाना हाथ लग गया है। उनकी यह बात सुनकर मेरा मुंह लटक गया। 

सच कहूं तो किताबों की अहमियत सभी को नहीं मालूम होती है। किसी से लिए यह रद्दी तो किसी से लिए नमक की पुड़िया बनाने वाले कागज से कम नहीं होता। मेरे लिए तो किताबें सोना से कम नहीं। मैं तो इसी से मालामाल होना चाहती हूं।

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

हाय रे नया साल!



नए साल को मनाने की प्लानिंग एक तीन पहले ही कर ली हम तीन दोस्तों ने। हमने मिलकर तय किया कि एक जनवरी को हम लोग रामनगर का किला देखने जाएंगे जहां रांझड़ा फिल्म की शूटिंग हुई थी या फिर सारनाथ जाएंगे जहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।

घूमने जाने की खुशी के मारे मन में बुलबुले फूट रहे थे। पूरी रात मैं सपनों में नए साल पर पहनने के लिए डिजाइनर कपड़े छांटती रही। सपना टूटा तो सुबह हो गई थी और एक गिलहरी दरवाजे में बने होल से आकर अंदर कमरे में बैठी थी। मैंने मन ही मन उसे हैप्पी न्यू ईयर विश किया और कमरे का दरवाजा खोला। सूरज पूरब से ही निकला था, ठंड एक दिन पहले जैसी ही थी, आसमान का रंग भी नीला ही था, चिड़ियों की चहचहाअट भी पुरानी ही थी, सप्ताह कई दिन पहले से शुरू था, सब कुछ पुराना था लेकिन एहसास था तो सिर्फ नए साल का।
इसके बाद मैंने अपने दोनों दोस्तों को फोन किया और हमने मिलकर यह तय किया कि हम रामनगर का किला देखने जाएंगे। हमने एक निश्चित समय और स्थान पर मिलने का निर्णय लिया और जाने की तैयारी में जुट गए।

बाथरूम में नहाते समय मैं एक के बाद एक गाने गुनगुना रही थी उसमें आजकल पांव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे भी शामिल था। गुनगुनाते हुए ही मैं बाथरूम से नहाकर बाहर निकली और नए कपड़े पहनकर बाल संवार रही थी कि पहली वाली सहेली का फोन आ गया...मैंने फोन उठाने से पहले यह सोचा कि वह उधर से बोलेगी कि अभी कितना समय लगेगा पहुंचने में। लेकिन हुआ ठीक उल्टा और उसकी बातें सुनकर मेरा मुंह सूज गया। उसने कहा कि उसे तेज बुखार आ गया है और वह हमारे साथ घूमने नहीं जा सकती। मेरी खुशी का सारा खुमार पल भर में ही फुर्र हो  गया। थोड़ी देर बाद दूसरे दोस्त का फोन आया और उसने कहा कि यदि हम तीनों घूमने जाते तो ज्यादा मजा आता। सहेली की बुखार के चलते उसने घूमने की प्लानिंग कैंसिल कर दी। 

दोपहर के एक बज गए थे। जाड़े की धूप में मेरा चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था तभी एक क्लासमेट का फोन आया। उसने कहा कि चलो नए साल पर बाजीराव मस्तानी ही देख आते हैं। दो मिनट में मेरा चेहरा पके टमाटर की तरह कोमल हो गया और मैं रामनगर का किला न देख पाने का मलाल भूल गई। वह बोला कि तीन बजे तक वह मुझे लेने आएगा। चार बजे से मूवी है।
मैं ढाई बजे से ही तैयार होने लगी। वह तीन बजे मेरे घर के बाहर आया और मुझे फोन करके बोला कि एक मिनट रूको जरा पता तो कर लूं कि सिनेमाघरों में बाजीराव मस्तानी का टिकट उपलब्ध है कि नहीं। थोड़ी देर बाद उसने बताया कि सारे टिकट सोल्ड आउट हो चुके हैं और अगला शो सात बजे से है।

मैंने मुंह लटकाकर नए कपड़े उतार दिए और गुस्से में अपने बालों को कुछ इस तरह से तितर-बितर किया जैसे काली मां किसी दुश्मन का वध करने के लिए पूरी तरह से तैयार हों।
इंतजार था तो शाम के छह बजने का ताकि एक अंतिम कोशिश की जाए और सात बजे वाले शो का टिकट मिल जाए और जैसे-तैसे यह नया साल मन जाए। साढ़े पांच बजे दोस्त ने टिकट काउंटर से फोन कर बताया कि सात बजे वाले शो के भी टिकट सोल्ड आउट हो चुके हैं। उस वक्त मेरा चेहरा देखने लायक था लेकिन वहां कोई देखने वाला नहीं था। मैंने जल्दी से इंटरनेट पर अन्य सिनेमाघरों के टिकट चेक किए। लेकिन सभी जगहों पर टिकट बिक चुके थे। सिगरा स्थित आईपी माल के टिकट काउंटर पर फोन किया तो पता चला कि वहां टिकट उपलब्ध है। यह सुनकर हमारी बांझे (जहां कहीं भी होती होगी) खिल गई। मैंने दोस्त को फौरन बताया कि आईपीमाल में टिकल उपलब्ध है। वह बोला कि इस समय तो सिर्फ हनुमान जी ही आईपी माल पहुंचा सकते हैं। शहर में जबरदस्त जाम लगा था और वह एक घंटे से जाम में फंसा था। मैंने सोचा कि तुरंत संकटमोचन जाऊं और ज्योतिषाचार्य लक्ष्मणदास से पुछूं कि महाराज कौन सा ग्रह लगा था आज कि नया साल इतना रूला दिया। लेकिन बनारस के जाम में फंसकर तो मुर्दे भी खड़े हो जाते हैं, मैं कहां जाती अपनी जान गंवाने। यहां तो नये साल का पहला दिन सिर्फ प्लानिंग करके खुश होने और कैंसिल होने पर गुस्सा करने में ही बीत गया।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

ऑफिस का वह लड़का



ऑफिस छोड़ने के पंद्रह दिन बाद आज मैं अपनी सैलरी लेने गई थी। ग्राउंड फ्लोर पर लिफ्ट के पास वह पोछा लगा रहा था। मुझे देखते ही उसने कुछ कहा लेकिन मैं बिना कुछ सुने ही यह कहते हुए कि बस दो मिनट में वापस आती हूं लिफ्ट में बंद हो गई।

छह महीने पहले वह तीसरी मंजिल पर खिड़की से बाहर अपना दोनों पैर लटकाकर बैठा था। मैंने ऑफिस जाते वक्त उसे बाहर से ही देखा था। तीसरी मंजिल पर पहुंचते ही मैंने उससे कहा कि जिंदगी जी लो अभी, क्यों मरने की जल्दी पड़ी है, तब उसने देवदास सा चेहरा बनाकर जवाब दिया कि बहुत भारी लगती है जिंदगी। एक दिन मैं जरूर मुंबई भाग जाऊंगा। बहुत सारा रूपया कमाने, गुजारा नहीं चलता इतने में। वह पहला दिन था जब मैंने सिर्फ इतनी सी बातें की थी उससे।
कैंटीन में वह जब भी मिलता, कहता कि मैडम जी चाय पीएंगी क्या? और मैं हमेशा कि तरह नहीं कहते हुए यह कहती कि तुम पी लो, मैंने नहीं पीना। फिर वह कहता आपको टॉफी बहुत पसंद है, खाएंगी क्या? तब मैं उसे घूरकर देखती और वह हंसते हुए चला जाता।

एक दिन और मैंने उसे खिड़की के बाहर पैर लटकाकर बैठे हुए देखा। जब मैं तीसरे मंजिल पर पहुंची तो उसे यकीन था कि मैं कुछ बोलूंगी और वह देवदास की तरह मुंह बनाकर उसका जवाब देगा। लेकिन मैंने कुछ नहीं बोला। जैसे ही मैं न्यूज रूम की तरफ बढ़ी, वह पीछे से बोला-मैडम जी आप हंसती हैं तो अच्छी लगती हैं और मैं बर्बस ही हंस पड़ी। रात में ऑफिस से निकलते वक्त जल्दबाजी में मेरे फोन का चार्जर वहीं छूट गया। अगले दिन मैं ऑफिस पहुंची तो वह तीसरे मंजिल पर लिफ्ट के पास खड़ा था। मैंने उससे पूछा- आज दोपहर में न्यूज रूम की सफाई किसने की। मेरा चार्जर कल छूट गया था। वह बोला- चिंता नहीं कीजिए, कहीं नहीं जाएगा आपका चार्जर, मिल जाएगा। शाम को जब मैं चाय पर निकली तो पूछा कि- मैडम जी चार्जर मिला क्या आपका। मेरे नहीं कहते ही वह तुरंत बोला नया चार्जर खरीद के दे दूं क्या आपको।

छह महीनों के जान-पहचान के बाद भी मुझे उसका नाम तक नहीं मालूम था। वह सफाई करने वाला लड़का था। ऑफिस में हमेशा नीले ड्रेस में दिख जाता। मैंने कई बार उसे जाते वक्त भी देखा था।
 
वह ऑफिस के ड्रेस को कंधे पर टांगे हुए अपनी शर्ट ठीक कर रहा होता था। जब कभी सामना होता तो कहता हमारा काम खत्म हो गया, अब हम तो घर जा रहे।

थोड़ी देर बाद मैं लिफ्ट से नीचे उतरी देखा कि वह पोछा लगाने के बजाय वहीं पर बैठा था। लिफ्ट से साथ में दो लोग और भी निकले मेरे साथ। वह उन्हें देख मुझे कुछ न बोल सका। लेकिन जैसे ही वे लोग आगे निकले तब उसने मुझसे कुछ कहा, और मैंने उसकी बात को बिना सुने ही कहा कि, अलविदा ! अब मेरा ऑफिस आना संभव नहीं होगा। वह मुझे एक टक देखता रहा और मैं तेज कदमों से बाहर निकल आई।

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

वह फब्ती अच्छी लगी



कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली के साथ शॉपिंग करने गई थी। बाजार के आसपास कई कॉलेज थे। शाम को कॉलेज की छुट्टी के बाद ज्यादातर लड़कियां बाजार में खरीदारी करते हुए दिखाई दे रही थीं। बाजार में काफी भीड़ थी। लड़कियों के बीच से गुजरते हुए दो-तीन लड़कों में से किसी एक ने कमेंट किया, यार आजकल लड़कियों की अच्छी लंबाई कितनी कम दिखती है। ज्यादातर लड़कियां नाटी ही रह जाती हैं। 

मेरी सहेली को उस लड़के का यह कमेंट भा गया। वह पीछे मुड़कर उस लड़के को देखी और मुझसे बोली, अभी उस लड़के ने जो कमेंट किया वह तुमने सुना? वैसे तो राह चलती लड़कियों पर लड़के तरह- तरह के कमेंट्स करते रहते हैं जो सुनना और बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन इस लड़के ने कितना सही कमेंट किया है। यह वाकई चिंता का विषय है। गौर करो..बाजार में ज्यादातर लड़कियां चार या फिर साढ़े चार फीट हाइट की ही दिख रही हैं। इस भीड़ में तो यह लड़कियां आजकल के बच्चों से भी छोटी दिख रही हैं।

शॉपिंग खत्म होने पर हम दोनों रिक्शे पर बैठकर घर वापस लौटने लगे। रास्ते में मेरी सहेली ने लड़कियों की लंबाई का मुद्दा उठाते हुए कहा कि वो लड़का पागल था। मैंने पूछा कैसे? वह बोली उस लड़के ने आजकल की लड़कियों की लंबाई पर गौर नहीं किया है। लड़के की उम्र पच्चीस साल रही होगी। उस लड़के को यह पता होना चाहिए कि कम लंबाई वाली ज्यादातर लड़कियां भी पचीस से तीस के उम्र के बीच की हैं। आजकल की लड़कियां जो अट्ठारह से बीस के बीच की हैं या उससे भी कम उम्र की हैं, उनकी लंबाई लड़कों से तनिक भी कम नहीं दिख रही है। आजकल के बच्चे और लड़कियों की लंबाई पहले की तुलना में ज्यादा देखने को मिलती है। खानपान में बदलाव और बदलते समाज का असर बच्चों पर तेजी से पड़ रहा है। शायद यही कारण है कि लड़कियों की लंबाई में पहले की अपेक्षा वृद्धि के साथ ही समाज के लड़के भी समय से पहले ही हर विषय के बारे में जानकारी हासिल कर ज्यादा मेच्योर हो जाते हैं।

सहेली ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि जब मैं गांव जाती हूं तो वहां कुछ लड़कियों की बुआ और कुछ की दीदी कहलाती हूं, लेकिन उन आठ से दस साल के लड़कियों की लंबाई भी मेरे बराबर या मुझसे कहीं ज्यादा ही अधिक है। उसने बताया कि गांव में जब छोटी ही उम्र में लड़कियां तेजी से लंबी होने लगती हैं तो उनकी माताएं कहती हैं कि देखो मेरी लड़की तो ताड़ की तरह लंबी हो रही है। कुछ घरों में तो लड़कियों का कंधा उनके पिता के कंधे के बराबर है, इसपर लड़कियों की माताएं हंसते हुए कहती हैं कि देखो मेरी बेटी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
शादी-ब्याह के दौरान लड़कियों की कम लंबाई हमेशा से एक समस्या रही है। लेकिन आजकल जो लड़कियां बड़ी हो रही हैं उनके साथ ऐसी समस्या नहीं आएगी। बल्कि शादी के दौरान उन्हें टोका जाएगा की हाई हील की सैंडिल न पहनना नहीं तो दूल्हे के सामने ताड़ जैसी दिखोगी। 

सहेली की बातें खत्म नहीं हुई थी। लेकिन घर आ गया था। वह उस लड़के के कमेंट की प्रशंसा करते हुए यह कह रही थी कि उस लड़के ने लड़कियों के ऊपर अच्छी वाली फब्ती कसीं। वाकई, लड़कियों की कम लंबाई चिंतनीय थी।

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

मैं बेरोजगार हो गई



अपने जीवन की पहली नौकरी पहली बार छोड़कर घर बैठी हूं। लोगों को कहते सुना और देखा है कि लोग अपनी किसी भी नौकरी को छोड़ने से पहले अपनी रोजी-रोटी चलाने का कोई न कोई बंदोबस्त कर लेते हैं लेकिन मैंने ऐसा कुछ सोचे बिना ही नौकरी को लात मार दिया।


आज सुबह जब मैं सो कर उठी तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं रिटायर्ड हो गई हूं। मुझे पैसे की फिक्र नहीं करनी चाहिए। सैलरी नहीं तो पेंशन जरूर मिलेगा। लेकिन यह सिर्फ मन का वहम था।

बिस्तर छोड़ने के बाद मैं ब्रश करने की सोच रही थी कि देखा टूथपेस्ट खत्म हो गया था। मकान मालिक से टूथपेस्त मांगी और ब्रश किया मैंने। सुबह समय पर नाश्ता किया और अखबार पढ़ने बैठ गई। थोड़ी देर बाद पीछे से मकान मालकिन की आवाज आई अरे तुम इतनी फुर्सत से अखबार चाट रही हो मानो रिटायर्ड होकर घर बैठी हो। मैंने कहा..मेरी वाली फीलिंग आपको कैसे आई तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।


एक बार अपने एक दोस्त के साथ लाइब्रेरी में बैठी थी तभी उसने अपने किसी मित्र से मेरा परिचय कराते हुए कहा कि इनसे मिलो ये शैलेश हैं और अपनी नौकरी छोड़कर आजकल पागलों की तरह यहां-वहां फिरते हैं। उस वक्त मुझे क्या पता था कि नौकरी करने का सुख और उसे छोड़ने का दुख क्या होता है। 


लेकिन आज एक खालीपन सा लग रहा है मानो पूरी दुनिया के लिए मेरे पास वक्त हो और दुनिया है कि अपने में ही मस्त है। शाम को ऑफिस से एक सीनियर का फोन आया तो उन्होंने कहा कि इंसान जब किसी भी चीज से अलग होता है ना तो एक खालीपन जरूर लगता है। चाहे वह अपना कुत्ता हो अपनी बाइक हो रूम मेट हो या फिर ऑफिस।


डेढ़ साल पहले तक मुझे चाय पीने की आदत नहीं थी लेकिन नौकरी में आने के बाद शाम को चाय पीने की लत लग गई। शाम होते ही आज यही लत परेशान करने लगी। चाय बनाने की तैयारी कर रही थी। लेकिन चीनी का डिब्बा खाली पड़ा मिला। अब एक अलग तरह की फीलिंग हो रही थी...बेरोजगारी वाली फीलिंग। सुबह टूथपेस्ट मकान मालिक से मांगी..शाम को चाय बनाने के लिए चीनी मांगी और अब बिना मांगे ही रात का खाना भी मिल गया। सच में ..मैं बेरोजगार हो गई हूं।