बुधवार, 13 जुलाई 2016

पेन कीमती है बाबू !



आपने कभी बैंक में, दफ्तर में, पोस्ट ऑफिस में या फिर क्लास में किसी से पेन मांगकर अपना काम चलाया है। अगर कभी ऐसी जरूरत पड़ी हो तो आपने देखा होगा जिस भाई या बहन जी से आपने पेन मांगी थी वे तब तक आपके सिर पर नाचते रहेंगे जब तक आप उन्हें उनकी पेन वापस कर दें। 

इस दौरान वे यह भी देखेंगे कि आप कौन सा फॉर्म भर रहे हैं, आपने उनकी पेन से कितनी लाइनें लिखी हैं। वे गौर से देखेंगे कि उनके पेन की रिफिल में पड़ी स्याही कहां से कहां खिसक कर आ गई। उफ्फ..आप माथा पकड़ लेंगे कि किस मुहूर्त में घर से निकले थे कि पेन रखना भूल गए।
बात आज की ही है। लाइब्रेरी में बैठी कुछ लिख रही थी कि अचानक मेरे पेन की स्याही खत्म हो गई। घर से जल्दबाजी में निकली थी और सिर्फ एक ही पेन साथ लेकर निकली थी। अब उसकी स्याही खत्म।  

अपनी बगल में बैठे एक लड़के से मैंने कहा-भाई कोई एक्स्ट्रा पेन हो तो मुझे दे दो, मेरे पेन की स्याही खत्म हो गई है। वह बोला, मेरे पास एक हरी, एक लाल, एक काली और एक नीली पेन है। मैंने सोचा लड़का मुझे ऑप्शन दे रहा है कि मेरे पास इतने रंगों की पेन है तुम्हें कौन सी चाहिए। लेकिन लड़का फौरन बोला-इन चारों पेन का इस्तेमाल मैं एक साथ कर रहा हूं। काली पेन से गणित के सवाल लिख रहा हूं, नीली पेन से सवाल हल कर रहा हूं, लाल पेन से फॉर्मूला लिख रहा हूं और हरी पेन से फॉर्मूले को बॉक्स में कर रहा हूं। इतना कहकर वह अपने काम में लग गया।

मैं बिना पेन की लड़की बैठे-बैठे किताबें पढ़ने लगी। कोई और रास्ता नहीं सूझ रहा था मुझे। लाइब्रेरी के आसपास कोई ऐसी दुकान भी नहीं थी जहां से पेन खरीदी जा सके। मैं लाइब्रेरी में बैठे सभी लोगों पर नजर दौड़ा रही थी कि शायद कोई जान-पहचान का मिल जाए और मुझे पेन मिल जाए। लेकिन ऐसा कोई नहीं दिखा। जिस वक्त मैं लोगों पर नजर दौड़ाई उस वक्त कोई पढ़ते हुए नहीं बल्कि सभी कुछ ना कुछ लिखते हुए दिखाई दिए। सिर्फ मेरे ही पास पेन नहीं थी बाकी सब कलम  के धनी थे। 

मैं बैठे-बैठे किताबें पढ़ने लगी। थोड़ी देर बाद बगल में बैठा वह लड़का बोला-आप चाहें तो मेरी हरी वाली पेन ले सकती हैं। मैंने उस पर एहसान वाली दृष्टि डाली और उसका पेन लेकर लिखने लगी। मुश्किल से दस मिनट बीते होंगे कि उसने अपनी पेन वापस मांग ली। उस वक्त मुझे ऐसा लगा जैसे पेन कि कीमत अचानक और उसी दिन बढ़ गई हो। कोई अपनी पेन देना ही नहीं चाह रहा था..जिसके पास चार थी वो भी एक साथ इस्तेमाल करने का दावा कर रहा था।

लड़के की पेन वापस देने के बाद मैं फिर से किताबें पढ़ने में जुट गई। इसी बीच मेरे बगल की दूसरी सीट पर एक लड़की आकर बैठी। उम्मीद की एक किरन जगी। मैंने उससे पूछा-बहन आपके पास एक्स्ट्रा पेन होगी क्या। मेरे पेन की स्याही अचानक खत्म हो गई औऱ मुझे कुछ लिखना था अभी। वह मुझे ऐसे देखी जैसे मैंने उससे कहा हो-बहन तुम्हारे घर घी है क्या, मुझे थोड़ा सा दे दो, गाजर का हलवा बनाना है। लड़की ने मुझे पेन नहीं दिया।

मैं फिर से किताबें पढ़ने लगी। लेकिन मन नहीं लग रहा था। उस तंगहाली में मैं पेन हासिल करने का प्रयास कर रही थी लेकिन मेरी सारी कोशिशें नाकाम हो रही थीं। मैं पेन के बिना बेचैन थी। अखबारों में पढ़ी थी कि ट्रेन में सफर करते वक्त किसी महिला ने अपने बच्चे की खातिर दूध के लिए सुरेश प्रभु को ट्वीट किया तो दूध उपलब्ध हो गया। मैं किस प्रभु को ट्वीट करूं कि इस लाइब्रेरी में मुझे कोई पेन उपलब्ध करा दे। सचमुच, आज पेन के लिए जो बेचैनी थी वो मैं ही समझ सकती हूं। पेन की कीमत आज पता चल गई मुझे।

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