गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

ऑफिस का वह लड़का



ऑफिस छोड़ने के पंद्रह दिन बाद आज मैं अपनी सैलरी लेने गई थी। ग्राउंड फ्लोर पर लिफ्ट के पास वह पोछा लगा रहा था। मुझे देखते ही उसने कुछ कहा लेकिन मैं बिना कुछ सुने ही यह कहते हुए कि बस दो मिनट में वापस आती हूं लिफ्ट में बंद हो गई।

छह महीने पहले वह तीसरी मंजिल पर खिड़की से बाहर अपना दोनों पैर लटकाकर बैठा था। मैंने ऑफिस जाते वक्त उसे बाहर से ही देखा था। तीसरी मंजिल पर पहुंचते ही मैंने उससे कहा कि जिंदगी जी लो अभी, क्यों मरने की जल्दी पड़ी है, तब उसने देवदास सा चेहरा बनाकर जवाब दिया कि बहुत भारी लगती है जिंदगी। एक दिन मैं जरूर मुंबई भाग जाऊंगा। बहुत सारा रूपया कमाने, गुजारा नहीं चलता इतने में। वह पहला दिन था जब मैंने सिर्फ इतनी सी बातें की थी उससे।
कैंटीन में वह जब भी मिलता, कहता कि मैडम जी चाय पीएंगी क्या? और मैं हमेशा कि तरह नहीं कहते हुए यह कहती कि तुम पी लो, मैंने नहीं पीना। फिर वह कहता आपको टॉफी बहुत पसंद है, खाएंगी क्या? तब मैं उसे घूरकर देखती और वह हंसते हुए चला जाता।

एक दिन और मैंने उसे खिड़की के बाहर पैर लटकाकर बैठे हुए देखा। जब मैं तीसरे मंजिल पर पहुंची तो उसे यकीन था कि मैं कुछ बोलूंगी और वह देवदास की तरह मुंह बनाकर उसका जवाब देगा। लेकिन मैंने कुछ नहीं बोला। जैसे ही मैं न्यूज रूम की तरफ बढ़ी, वह पीछे से बोला-मैडम जी आप हंसती हैं तो अच्छी लगती हैं और मैं बर्बस ही हंस पड़ी। रात में ऑफिस से निकलते वक्त जल्दबाजी में मेरे फोन का चार्जर वहीं छूट गया। अगले दिन मैं ऑफिस पहुंची तो वह तीसरे मंजिल पर लिफ्ट के पास खड़ा था। मैंने उससे पूछा- आज दोपहर में न्यूज रूम की सफाई किसने की। मेरा चार्जर कल छूट गया था। वह बोला- चिंता नहीं कीजिए, कहीं नहीं जाएगा आपका चार्जर, मिल जाएगा। शाम को जब मैं चाय पर निकली तो पूछा कि- मैडम जी चार्जर मिला क्या आपका। मेरे नहीं कहते ही वह तुरंत बोला नया चार्जर खरीद के दे दूं क्या आपको।

छह महीनों के जान-पहचान के बाद भी मुझे उसका नाम तक नहीं मालूम था। वह सफाई करने वाला लड़का था। ऑफिस में हमेशा नीले ड्रेस में दिख जाता। मैंने कई बार उसे जाते वक्त भी देखा था।
 
वह ऑफिस के ड्रेस को कंधे पर टांगे हुए अपनी शर्ट ठीक कर रहा होता था। जब कभी सामना होता तो कहता हमारा काम खत्म हो गया, अब हम तो घर जा रहे।

थोड़ी देर बाद मैं लिफ्ट से नीचे उतरी देखा कि वह पोछा लगाने के बजाय वहीं पर बैठा था। लिफ्ट से साथ में दो लोग और भी निकले मेरे साथ। वह उन्हें देख मुझे कुछ न बोल सका। लेकिन जैसे ही वे लोग आगे निकले तब उसने मुझसे कुछ कहा, और मैंने उसकी बात को बिना सुने ही कहा कि, अलविदा ! अब मेरा ऑफिस आना संभव नहीं होगा। वह मुझे एक टक देखता रहा और मैं तेज कदमों से बाहर निकल आई।

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

वह फब्ती अच्छी लगी



कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली के साथ शॉपिंग करने गई थी। बाजार के आसपास कई कॉलेज थे। शाम को कॉलेज की छुट्टी के बाद ज्यादातर लड़कियां बाजार में खरीदारी करते हुए दिखाई दे रही थीं। बाजार में काफी भीड़ थी। लड़कियों के बीच से गुजरते हुए दो-तीन लड़कों में से किसी एक ने कमेंट किया, यार आजकल लड़कियों की अच्छी लंबाई कितनी कम दिखती है। ज्यादातर लड़कियां नाटी ही रह जाती हैं। 

मेरी सहेली को उस लड़के का यह कमेंट भा गया। वह पीछे मुड़कर उस लड़के को देखी और मुझसे बोली, अभी उस लड़के ने जो कमेंट किया वह तुमने सुना? वैसे तो राह चलती लड़कियों पर लड़के तरह- तरह के कमेंट्स करते रहते हैं जो सुनना और बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन इस लड़के ने कितना सही कमेंट किया है। यह वाकई चिंता का विषय है। गौर करो..बाजार में ज्यादातर लड़कियां चार या फिर साढ़े चार फीट हाइट की ही दिख रही हैं। इस भीड़ में तो यह लड़कियां आजकल के बच्चों से भी छोटी दिख रही हैं।

शॉपिंग खत्म होने पर हम दोनों रिक्शे पर बैठकर घर वापस लौटने लगे। रास्ते में मेरी सहेली ने लड़कियों की लंबाई का मुद्दा उठाते हुए कहा कि वो लड़का पागल था। मैंने पूछा कैसे? वह बोली उस लड़के ने आजकल की लड़कियों की लंबाई पर गौर नहीं किया है। लड़के की उम्र पच्चीस साल रही होगी। उस लड़के को यह पता होना चाहिए कि कम लंबाई वाली ज्यादातर लड़कियां भी पचीस से तीस के उम्र के बीच की हैं। आजकल की लड़कियां जो अट्ठारह से बीस के बीच की हैं या उससे भी कम उम्र की हैं, उनकी लंबाई लड़कों से तनिक भी कम नहीं दिख रही है। आजकल के बच्चे और लड़कियों की लंबाई पहले की तुलना में ज्यादा देखने को मिलती है। खानपान में बदलाव और बदलते समाज का असर बच्चों पर तेजी से पड़ रहा है। शायद यही कारण है कि लड़कियों की लंबाई में पहले की अपेक्षा वृद्धि के साथ ही समाज के लड़के भी समय से पहले ही हर विषय के बारे में जानकारी हासिल कर ज्यादा मेच्योर हो जाते हैं।

सहेली ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि जब मैं गांव जाती हूं तो वहां कुछ लड़कियों की बुआ और कुछ की दीदी कहलाती हूं, लेकिन उन आठ से दस साल के लड़कियों की लंबाई भी मेरे बराबर या मुझसे कहीं ज्यादा ही अधिक है। उसने बताया कि गांव में जब छोटी ही उम्र में लड़कियां तेजी से लंबी होने लगती हैं तो उनकी माताएं कहती हैं कि देखो मेरी लड़की तो ताड़ की तरह लंबी हो रही है। कुछ घरों में तो लड़कियों का कंधा उनके पिता के कंधे के बराबर है, इसपर लड़कियों की माताएं हंसते हुए कहती हैं कि देखो मेरी बेटी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
शादी-ब्याह के दौरान लड़कियों की कम लंबाई हमेशा से एक समस्या रही है। लेकिन आजकल जो लड़कियां बड़ी हो रही हैं उनके साथ ऐसी समस्या नहीं आएगी। बल्कि शादी के दौरान उन्हें टोका जाएगा की हाई हील की सैंडिल न पहनना नहीं तो दूल्हे के सामने ताड़ जैसी दिखोगी। 

सहेली की बातें खत्म नहीं हुई थी। लेकिन घर आ गया था। वह उस लड़के के कमेंट की प्रशंसा करते हुए यह कह रही थी कि उस लड़के ने लड़कियों के ऊपर अच्छी वाली फब्ती कसीं। वाकई, लड़कियों की कम लंबाई चिंतनीय थी।

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

मैं बेरोजगार हो गई



अपने जीवन की पहली नौकरी पहली बार छोड़कर घर बैठी हूं। लोगों को कहते सुना और देखा है कि लोग अपनी किसी भी नौकरी को छोड़ने से पहले अपनी रोजी-रोटी चलाने का कोई न कोई बंदोबस्त कर लेते हैं लेकिन मैंने ऐसा कुछ सोचे बिना ही नौकरी को लात मार दिया।


आज सुबह जब मैं सो कर उठी तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं रिटायर्ड हो गई हूं। मुझे पैसे की फिक्र नहीं करनी चाहिए। सैलरी नहीं तो पेंशन जरूर मिलेगा। लेकिन यह सिर्फ मन का वहम था।

बिस्तर छोड़ने के बाद मैं ब्रश करने की सोच रही थी कि देखा टूथपेस्ट खत्म हो गया था। मकान मालिक से टूथपेस्त मांगी और ब्रश किया मैंने। सुबह समय पर नाश्ता किया और अखबार पढ़ने बैठ गई। थोड़ी देर बाद पीछे से मकान मालकिन की आवाज आई अरे तुम इतनी फुर्सत से अखबार चाट रही हो मानो रिटायर्ड होकर घर बैठी हो। मैंने कहा..मेरी वाली फीलिंग आपको कैसे आई तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।


एक बार अपने एक दोस्त के साथ लाइब्रेरी में बैठी थी तभी उसने अपने किसी मित्र से मेरा परिचय कराते हुए कहा कि इनसे मिलो ये शैलेश हैं और अपनी नौकरी छोड़कर आजकल पागलों की तरह यहां-वहां फिरते हैं। उस वक्त मुझे क्या पता था कि नौकरी करने का सुख और उसे छोड़ने का दुख क्या होता है। 


लेकिन आज एक खालीपन सा लग रहा है मानो पूरी दुनिया के लिए मेरे पास वक्त हो और दुनिया है कि अपने में ही मस्त है। शाम को ऑफिस से एक सीनियर का फोन आया तो उन्होंने कहा कि इंसान जब किसी भी चीज से अलग होता है ना तो एक खालीपन जरूर लगता है। चाहे वह अपना कुत्ता हो अपनी बाइक हो रूम मेट हो या फिर ऑफिस।


डेढ़ साल पहले तक मुझे चाय पीने की आदत नहीं थी लेकिन नौकरी में आने के बाद शाम को चाय पीने की लत लग गई। शाम होते ही आज यही लत परेशान करने लगी। चाय बनाने की तैयारी कर रही थी। लेकिन चीनी का डिब्बा खाली पड़ा मिला। अब एक अलग तरह की फीलिंग हो रही थी...बेरोजगारी वाली फीलिंग। सुबह टूथपेस्ट मकान मालिक से मांगी..शाम को चाय बनाने के लिए चीनी मांगी और अब बिना मांगे ही रात का खाना भी मिल गया। सच में ..मैं बेरोजगार हो गई हूं।