शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

भाई का साबुन..

वह भाई के साबुन से नहाने की जिद करती रही..मां ने उसके सिर पर दो लोटा पानी डालकर गाल पर दो थप्पड़ जड़ दिया और उसकी नाक, आंख, कान, मुंह को हाथों से ऐसा रगड़ा कि कोई और चीज होती तो उसका हुलिया बदल जाता।
 मां उसे वहीं छोड़ कर चली गई। वह जोर-जोर से रोती रही...शायद वैसे जैसे दादी की कहानियों में स्त्रियों के रोने पर जंगल की पत्तियां झड़ जाया करती थीं। जहां खड़ी होकर वह रो रही थी..वहांं भी तो एक नीम का पेड़ था...लेकिन उसका रूदन सुनकर एक भी पत्ती नहीं गिरी।

थोड़ी देर बाद मां अपने कमरे से तैयार होकर भाई को गोद में लेकर घर से बाहर कहीं चली गई। वह वहीं खड़ी होकर अभी भी रो रही थी। उसके देह का पानी सूख गया था। भाई का साबुन बगल में पड़ा था। लेकिन उसके लिए अब साबुन का कोई महत्व नहीं था।

शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

देखो...ये किस तरह से बताते हैं

कल शाम पड़ोस के एक घर में बैठी थी। तभी पड़ोसिन के बच्चे अपनी आंटी से मिलकर उनके मायके से आए। पड़ोसिन की देवरानी यानि उन बच्चों की आंटी प्रेग्नेंट थीं, और वह अपने मायके गई थीं। आंटी से मिलने की जिद करने पर पड़ोसिन ने बच्चों को उनके मायके भेजा था।
 बच्चों के वहां से लौटने के बाद पड़ोसिन अपनी देवरानी का हाल जानने के लिए बेताब थीं।
 उन्होंने सबसे पहले अपने बेटे से पूछा,  'बताओ ना आंटी कैसी दिख रही थीं '?
 बेटा बोला,  'जैसी यहां पर दिखती थीं"।
पड़ोसिन बोली,  'आंटी का पेट देखा कितना निकला था' !!
बेटा चिढ़ कर बोला,  क्या बात कर रही हो मम्मी, मैं यह देखने थोड़े ही गया था कि आंटी का पेट कितना निकला है...हां तुम जाने से पहले मुझे यह बात बोली होती तो मैं देख कर आता...मेरा तो ध्यान ही नहीं गया कि पेट कितना निकला है। हां....वो मोटी जरूर हो गयी थीं।
 पड़ोसिन ने फिर अपनी बेटी से पूछा,  'तू बता न चाची का पेट कितना निकला था' !!
बेटी बोली...अरे मम्मी, चाची का पेट तो तोंदूमल की तरह निकला था, उनको बहुत पसीना आ रहा था और मिचली भी। पैरों में सूजन  थी...वो कह रही थीं कि उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगता। मन घबराता है .....
बेटी की बातें सुनकर पड़ोसिन किसी सोच में गोते खाने लगीं ।

मैनें अक्सर देखा है...मर्द किसी बात को उस तरीके से नहीं कहते जैसे कि लड़कियां।

मेरे पिजाजी जब बुआ से मिलकर आते थे तब मां उन्हें पानी का गिलास थमाकर हालचाल पूछने बैठ जाती थी पिताजी उन्हें एक गिलास पानी जितना ही बुआ का हालचाल बताते। मतलब पानी खतम तो हालचाल खतम। फिर वो उठते और चले जाते। फिर बुआ का हालचाल  नहीं पूछा जाता।
मां बुआ का हालचाल उस ढंग से सुनना चाहती थी जैसे दो सहेलियां आपस में बतिआती हैं, लेकिन पिताजी कक्षा में पढ़ाए गए किसी अध्याय की तरह शुरू और  खत्म कर देते। मां को यह हजम न होता...और वह गुस्से के मारे दोबारा पूछती ही नहीं थीं।
लेकिन यह सच है कि जिस तरह औरतें किस्सा सुनाती हैं...मर्द उसकी बस शुरूआत भर ही कर पाते हैं।