रविवार, 23 फ़रवरी 2014

ऐसी होती है सजा....


शैतान श्रेया

रस्सी से उसके दोनो हाथ बंधे थे..एक पैर खुला था जिसके सहारे वह जमीन पर बैठी थी, दूसरा पैर रस्सी से कूलर स्टैंड में बांधा गया था।

जब उससे पूछा जा रहा था मार दिया जाय कि छोड़ दिया जाय तब वह हर सूलूक सहने को तैयार थी और आंगन में इधर से उधर फुदकती हुई चुहिया को देख रही थी जैसे इस वक्त उसके हाथ पांव आजाद होते तो वह चुहिया को पकड़कर ठीक यही पूछ रही होती जो उसकी मम्मी अभी उससे पूछ रही हैं।

उसकी मम्मी बच्चों को पीटने में विश्वास तभी रखती हैं जब गुस्सा चरम सीमा पर हो..इसलिए आज सजा के तौर पर श्रेया के हाथ पैर बांधे गए थे सिर्फ इस जुर्म में कि बिना बताए वह अपने मुहल्ले की सीमा पार कर बस्ती में रह रहे मजदूरों के कुछ बच्चों के साथ खेलने चली गयी थी।

छत पर खोजा गया..कमरे में खोजा गया..ल़़ॉन में खोजा गया..नहीं मिली। उसकी मम्मी तुरंत उसकी तस्वीर लेकर बैठ गयीं और उसे आंसुओं से नहलाने लगीं। पड़ोस में भी नहीं मिली..उसकी मम्मी का दम निकला जा रहा था।

एक लड़के को मजदूरों की बस्ती में भेजा गया कि उसे कोई उठा तो नही ले गया..इतना बोलती है..टमाटर जैसे गाल हैं...हर कोई झट से गोद में उठा लेता है।

लड़का थोड़ी देर बाद उसे गोद में लिए आया, श्रेया खुद को उससे छुड़ाने की कोशिश में उसके स्थिर कान को घुमा रही थी।

लड़के ने श्रेया को गोद से उतारते हुए उसकी मम्मी से कहा कि मजदूरों के बच्चों के साथ दुकान दुकान खेल रही थी।
मिट्टी के लड्डू..घास की सब्जियां और धूल के आंटे बेच रही थी। यह सुनकर श्रेया कि मम्मी को हंसी आ गयी।

फिर भी सजा तो बनती थी इसलिए नहीं कि अपने कीमती गुड्डे गुड़ियों को छोड़ वह मजदूरों की बस्ती में दुकान लगाए बैठी थी...बल्कि इसलिए कि वह इतने वक्त में मम्मी की जान निकालने वाली थी।

श्रेया की उम्र तीन साल और मम्मी को गुस्सा दिलाने के एवज में दो घंटे कूलर स्टैंड से बंधे रहने की सजा।

 उसके इस सजा पर चुहिया आंगन में आकर उसे चिढ़ा कर चली जा रही थी। और इस दौरान श्रेया सोच रही थी कि अगर दो घंटे बाद यह चुहिया ऐसे ही दिख जाय तो वह उसकी पूंछ बड़े से धागे मे बांध कर छत से नीचे लटकाएगी और कहेगी ऐसी होती है सजा...समझे बच्चू...??

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