रविवार, 18 अगस्त 2013

शौक धरा का धरा रह गया....



बचपन मे जब कभी दादी या मम्मी के साथ किसी के घर शादी ब्याह में जाती तो देखती औरतें ढ़ोलक बजाते हुए ब्याह के मंगल गीत गाती थीं। ढोलक की थाप कहीं औऱ तो गाना कहीं औऱ भागता, अच्छे खासे गीत का सत्यानाश हो जाता। अन्त में औरतें ढोलक बजाना बन्द करवा देतीं औऱ तेज आवाज में कोरस गातीं। हालांकि ढोलक बजाने वाली औऱत ढोलक वाली चाची के नाम से जानी जाती थी, इससे यह पता चलता था कि ये ढोलक बजाती हैं लेकिन कैसा बजाती हैं ये उनकी कला का प्रदर्शन देखने के बाद पता चलता था। उस वक्त मैं सोचती कि काश मुझे ढोलक बजाने आता तो मंगल गीत आज रात परवान चढ़ जाता। 
    
यह खयाल हमेशा मेरे दिमाग में रहता कि शादी ब्याह में अच्छा ढोलक बजाने वाली औरतें काफी मुश्किल से मिलती हैं। औऱ इसी ख्याल से जूझते हुए मैने कभी मौका मिलने पर ढोलक सीखने की सोची।

 अबकी गर्मी की छुट्टियों में मैनें ढोलक सीखनें का मन बनाया । सोच सोच के मन प्रफुल्लित हो रहा था कि जब मुझे ढोलक बजाने आ जाएगा तब गांव जाने पर मुहल्ले की औरतें शादियों में मुझसे ढोलक बजवायेंगी और मेरा भाव बढ़ जाएगा। ढोलक सीखने की सोचकर मैं खुशी के मारे फूले नहीं समा रही थी । 

सोचा फोन करके एक बार मम्मी से पूछ लूं। मैने मां को फोन करके बताया कि मैं ढोलक सीखने जा रही हूं। इतना सुनते ही मां तपाक से बोलीं- अच्छा!! तो शादी करने का मूड बन गया? मैं गुस्सा हो गयी और बोली, आप तो कुछ भी बोलती रहती हैं। अरे, शौक है मेरा कि मुझे ढोलक बजाना आए। हर जगह जरुरत पड़ती है, खासकर शादी ब्याह वाले घरों में।

 मां एकदम से बिगड़ गयीं औऱ बोली – लप्पड़ लगेगा बेटा, चुपचाप पढ़ाई करो, ज्यादा इधर उधर की चीजों पर ध्यान ना दो। बड़ा शौक चर्राया है ढोलक सीखने का। होली दिवाली में गली-गली ढोलक बजाकर मनोज तिवारी के गाने गाते हुए त्योहारी मांगोगी क्या। सिलाई कढाई सीखने को कह दो तो मुंह से इनके आवाज ही नहीं निकलती। चलीं हैं ढोलक सीखने। ऐसी चीजे सीखो जो भविष्य में काम आए।
अब मैने जिद्द में पीएचडी तो कि नहीं थी कि मैं मां को मना लूं। लेकिन अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करने के बाद भी मां नहीं मानी। इस तरह ढोलक सीखने का मेरा यह शौक धरा का धरा रह गया। अब सोचती हूं, ढोलक सीखकर क्या होगा, मुझे गली-गली घूम कर त्योहारी थोड़े ही मांगनी है।

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