शुक्रवार, 8 मार्च 2013

लाईफबॅाय है जहां......



लाईफबॅाय है जहां..तंदुरुस्ती है वहां….लाईफबॅाय….उस समय मोहल्ले के हर घर के साबुनदानी में इसी साबुन का स्थान था….तब किसी टीवी के विज्ञापन से प्रभावित होकर यह साबुन घर में नहीं आता था…या यूं कहें कि पहले साबुन आया फिर मोहल्ले में एक जन के घर टीवी आयी और तब जाकर यह पता चला कि अरे हम जो साबुन लगाते हैं वह तो बहुते अच्छा है…….और उस समय यह साबुन फोर इन वन करके भी नहीं आता था…
साबुन खत्म होने पर फिर यही साबुन घर में लाकर रख दी जाती थी…दादा  यही साबुन लगाते थे…पिताजी भी घर में यही साबुन लाते थे…
हमारा भी बचपन इसी साबुन से साफ हुआ….उस समय मां को ना इतना ज्ञान था और ना ही हमारे आसपास के बाजार में ऐसा कोई साबुन था…कि मां हमारे लिए "नो मोर टियर्स" की बात सोचती….चाहे साबुन आंख में लगे चाहे झाग मुंह में घुस जाए….मां यही साबुन लगाकर  मुंह मल मल कर हमें नहलाती थी…और जब पानी से मुंह धो देती थी तो हम खूब रोते थे…कुछ देर तक आंख मिचमिचाते औऱ रोते रहते थे तब जाकर कुछ दिखाई देता था…बहुत डर लगता था…जब मां नहाने के लिए खोजती थी…और हम रिरियाते कि नहीं नहाएंगे हम इस साबुन से … लेकिन कैसे भी करके हम इसी साबुन से नहा कर तंदुरुस्त हुए…..
तब तक यह बस नहाने का ही साबुन था…और हाथ धोने के लिए रिन साबुन के टुकड़े रखे जाते थे….लेकिन कुछ समय बाद लोग गमगमाने वाली किसी साबुन की तरफ आकर्षित हुए उस समय मुहल्ले के कई घरों में टेलिविजन आ चुका था….औऱ लोग सोनाली वेंद्रे के साबुन को घसने के इच्छुक हुए…औऱ घर के साबुनदानी मे खूशबुदार निरमा का निवास हो गया…
.कुछ दिनों बाद नीबू की खूशबु वाला सिंथॅाल भी आया…औऱ लाईफबॅाय को लोगों ने हाथ धोने का साबुन बना दिया….तब तक लाईफबॅाय का हैण्ड वॅाश विकसित नही हुआ था….और ऐसा लगता है कि लोगों से प्रेरित होकर ही हिन्दुस्तान यूनिलीवर नें लाईफबॅाय का हैंडवॅाश परोसा….. और टेंशनियाकर कुछ दिन बाद लाईफबॅाय में भी खुशबू झोंक दिया…साबुन के रैपर को नया रुप दिया…
तब भी कुछ खास असर नही हुआ….लोग तो बस हिरोइनों के विज्ञापनों वाले साबुन से गमगमाने के आदी होने लगे थे….और लाईफबॅाय  उनके लिए बीते दिनों की बात हो गयी थी….आजकल लड़कियां या महिलाएं इस साबुन से कोशों दूर भागती हैं… मानों इसे बस छूनें मात्र से ही उनके शरीर का रंग गंदे नाले के पानी की तरह हो जाएगा….और पुरुषों को यह क्यों नही भाती यह षड्यंत्र वही जानें…. लाईफबॅाय दुकानों में तो दिखती है…लेकिन साबुनदानी में नहीं दिखती है….अगर दिखती भी है तो हैंडवॅाश के रुप में…लोग अब सफेद औऱ पिंक साबुन ज्यादा बिकवाते है…… जैसे साबुन नहीं कोई लेटर पैड हो…..                           

3 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

वाह मजा आ गया इसे बांचकर।
सहज लिखने का अंदाज बहुत अच्छा है तुम्हारा। नियमित लिखती रहो।

हरीश सिंह ने कहा…

sarahniy prayas

Unknown ने कहा…

बहुत रोचक प्रस्तुति