गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

पॅालिश

आते जाते अक्सर
देखा है मैनें तुझको
सड़क किनारे
दो बित्ते जमीन घेरे
बैठा रहता है तू
उसी पुराने बक्से को लेकर
जो तेरे पुरखों का था
और अब तेरा है
सैकड़ो हसीन  चेहरे
दिखते हैं तुझे आते-जाते
लेकिन तेरी तो नजर रहती है
धरा पर, उनके जूतों पर
फटे जूते को तू
सिलता है जाने किस सलीके से
कि मीलों का सफर तय करने की
मजबूती आ जाती है उनमें
 पॅालिश से चमकाया
तूने उस जूते को ऐसे
बूढ़ा आदमी एक बार
बच्चा हो गया हो जैसे
हमने भी सिले थे रिश्तों को
जो बाहरी दबाव से टूट गए
हमको भी तरकीब सिखा दे
तो रिश्तों मे चमक आ जाये

 

1 टिप्पणी:

हरीश सिंह ने कहा…

हमने भी सिले थे रिश्तों को
जो बाहरी दबाव से टूट गए
हमको भी तरकीब सिखा दे
तो रिश्तों मे चमक आ जाये
shandar, anamika ji, behtareen lekhan, aabhar