शनिवार, 29 दिसंबर 2012

रेस्ट इन पीस..

..और अन्त में दम तोड़ दी दामिनी…..पिछले 12 दिनों से अपनी सांसों से जंग लड़ रही बेटी नें आज  अंतिम सांस ली….इन दिनों में उन बलात्कारियों के साथ कुछ भी नहीं किया गया…जिससे दामिनी की आत्मा को शांति मिले …. विरोध प्रदर्शन हुआ…लोगों ने उसके जीवन की दुआएं मांगी..लेकिन किसी की दुआ काम ना आयी और दम तोड़ दी दामिनी..
जब अचानक खबर मिली…दामिनी के बेहतर इलाज के लिए उसे सिंगापुर ले जाया गया है…तभी दिमाग में तमाम तरह के प्रश्न तैर रहे थे…कि उसे वेंटिलेटर पर रखा गया है…हालत बेहद नाजुक है फिर हवाई जहाज द्वारा सिंगापुर ले जाना??…..एक डर सा उठा था मन में ….ऐसा लग रहा था भारत में वो किसी के सिर का दर्द बनी हो और इससे निजात पाने के लिए उसे यहां से खिसकाया जा रहा है…जैसे विरोध प्रदर्शन से सरकार उकता गयी हो और उसे यहां से हटाना ही उचित समझा…..रात में खबर आयी उसे सिंगापुर ले जाने का कारण मेडिकल नहीं राजनैतिक था….आखिर सिंगापुर में दुसरे दिन उसने दम तोड़ ही दिया….दिल्ली के डाक्टरों का दावा था कि पहले हालत में सुधार लाना जरुरी है..फिर महिनों बाद आंत प्रत्यारोपण के बारे में सोचा जाएगा….यही नहीं भारत में लगभग 9 दिन चले इलाज के दौरान एकबार भी इस बात की खबर नहीं मिली  कि उसका मष्तिक भी घायल है लेकिन सिंगापुर पहुंचते ही ये खबर आयी की उसका मष्तिक भी इंजर्ड है….क्या 9 दिनों के इलाज के दौरान भारतीय डाक्टरों को ये चोट दिखी नहीं या सिंगापुर पहुंचते ही मष्तिक इंजर्ड हो गया…अगर हुआ तो कैसे हुआ??….इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा??…एकाएक उसे सिंगापुर भेजनें वाली सरकार या डाक्टर?….क्या आपको नहीं लगता कि अंतिम तीन दिंनों से उसकी जिंदगी राजनैतिक दांव पेंच में उलझी थी…भारत में आंत प्रत्यारोपण के जनक माने जाने वाले डाक्टर समीरन नें कहा…कि सिंगापुर ले जानें की कोई जरुरत नहीं थी….पहले उसकी हालत में सुधार लाना जरूरी था ना कि आंत प्रत्यारोपण……
इन बारह दिनों में भारत में क्या नहीं हुआ….जनता विरोध प्रदर्शन करने सड़कों पर उतरी …महिलाएं अपने हक की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरी …..
दिल्ली की मुख्यमंत्री की हिम्मत नहीं हुई अस्पताल जाकर उस लड़की को देखनें की….ये नौटंकी नहीं था…..उन्होंने कहा मैं समझ सकती हूं मेरी भी बहू-बेटी है…जब आप समझ सकती हैं तो आपने अब तक कुछ किया क्यों नहीं …..प्रधानमंत्री राष्ट्रपति जैसे तमाम नेता इस घटना के बाद मिडिया के सामने अपनी बेटियों की संख्या गिना रहे हैं…कि हमारी भी इतनी इतनी बेटियां हैं और हम समझ सकते हैं……बेटियों का हवाला देकर इन्हें गंदी सहानुभूति जताते हुए शर्म नहीं आती….अरे क्या इनकी बेटियां नहीं रहेंगी तो इन्हें बलात्कार, बलात्कार पीड़ीता का दर्द समझ में नहीं आएगा…घिन आती है देश को चलाने वाली ऐसी सरकार पर….
इन नेताओं में से किसी एक की भी लड़की के साथ बलात्कार हुआ होता तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि फिर सिस्टम किस तरह काम करता…..रातों रात बलात्कारी को सूली पर चढ़ा दिया जाता….पहले ही दिन विदेशी इलाज पाकर इनकी लड़की अगले दिन टनाटन हो जाती…. लेकिन ये राजनेता हैं..इनकी लड़कियों के लिए हम इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते……हम इनकी सुविधाओं को बस अंगुलियों पर गिन सकते हैं…..प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर प्रणव दा के सुपुत्र ने छींटाकसी की….
बलात्कार पीड़िता की मौत के बाद मेनका गांधी नें कहा कि ये सरकार  की चाल लगती है…हो सकता है लड़की की मौत भारत में ही  हो  गयी हो…और उसके बाद उसके बेहतर इलाज का हवाला देकर उसे सिंगापुर ले जाया गया हो….हमें मेनका गांधी के बातों में कोई संशय नहीं  दिखता और सरकार पर यह इल्जाम लगाते हुए जरा भी डर नहीं लगता कि ये मौत सरकारी दांवपेच में हुई है…… 

हम किस-किस पर इल्जाम लगाते फिरें की मौत का कारण ये नहीं ये है…हम तो केवल इस बात की फरियाद कर सकते हैं कि बलात्कारियों को एक ऐसी सजा दी जाय..जिससे इस तरह के जघन्य अपराध पर अंकुश लगे…हम कब तक एक के बाद एक बेटियों के जिस्म के साथ खिलवाड़ होनें दे…और अन्त में उसे दम तोड़ते देखेंगे ..कब तक औरत होनें पर आंसू बहाएं और कैंडल लेकर सड़क पर निकले…आज दामिनी गयी है कल को कोई दूसरी बेटी जाएगी…सरकार उचित कारवाई का ढ़ाढस बंधाती रहेगी…बलात्कार पीड़ीता के प्रति अपनी संवेदना दिखाती रहेगी…हम सड़क पर विरोध प्रदर्शन में निकलेंगे..राजनेता हम पर लाठियां बरसाएंगे….महिलाओं पर छींटाकसी करेंगे….और उनके भरोसे कल हमारी एक और बेटी हलाल की जाएगी


शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

एक रूपए दे दो भईया...


तेज बुखार ने मुझे ऐसे चपेट मे लिया कि एक हफ्ते तक मैं बिस्तर से उठ ना सकी …जब बुखार उतरा और मैं कुछ अच्छा महसूस होने लगा तो मेरा घर से बाहर कहीं घूमने और कुछ खाने का मन हुआ…

मैनें बड़े भाई को फोन लगाया..और कहीं घूमने चलनें को बोला…पहले तो उन्होंने मुझे डांटा और मना कर दिया…लेकिन  काफी मनौती और मेरी बुखार वाली दास्तां सुनकर उन्होंने चलने के लिए हामी भर दी…

इलाहाबाद में रहते हुए मुझे एक साल हो गए थे लेकिन मै अभी तक नैनी ब्रिज नहीं देखी थी------इसलिए हम नैनी गए…नैनी का कैंटोंमेंट एरिया जवानों की चौकड़ी है…साफ सुथरी चौड़ी और ऊंची सड़कें.. दोनों तरफ घने पेड़ -पौधे…बगल में बहती गंगा नदी…उसको सलाम करता नैनी ब्रिज ..हनुमान जी का छोटा सा मंदिर और बड़ी सी भीड़…बंदर लंगूर..भांति-भांति के पक्षी…अद्भुत नजारा था…ऐसा लग रहा था कि मैं घर मे टंगी कोई सिनरी देख रही हू…जिसमें ये सारे नजारे मुझे एक साथ दिख रहे हैं….

नौजवान लड़के-लड़कियां एक दूसरे का हाथ पकड़े टहल रहे थे…..कुछ लोगों की भीड़ मंदिरों मे थी…घुमते-घूमते हमलोगों ने चिप्स का एक पैकेट खरीदा…और वहीं के एक पार्क में बैठकर खाने लगे…तभी 3-4 लड़के हमारे बगल से गुजरे..उनमें से एक ने मेरे पर छींटाकसी की…."मैडम मियां जी के साथ मजे ले रही हैं..और हम तन्हा घूम रहे हैं"….
कसम से इतना सुनते ही दिमाग भन्ना गया….लेकिन भईया ने मुझे कुछ बोलने नहीं दिया….वे जैसे ही उठे उन लड़कों ने तेज की दौड़ लगाई और भाग गए….मैने आस-पास देखा कि कई लड़कियां लड़कों के कंधे पर सिर टेके बैठी थी…तब मुझे लड़कों के छींटाकसी की वजह समझ मे आयी….
शाम हो चली थी और हम हनुमान मंदिर से गुजरते हुए आगे बढ़ रहे थे…तभी दो छोटी-छोटी लड़कियों ने हमे घेर लिया….हाथ मे कटोरी पकड़े और सिर खुजलाते हुए रटी जा रही थी…दीदी एक रूपया दे दो…भईया दे दो…बिस्कुट ही दे दो….हमारे पास उस वक्त बिस्कुट तो था नहीं लेकिन उनको ना जानें कहां दिखा…

.मैनें पर्स खोला लेकिन मेरे पास फुटकर पैसे नहीं थे…भईया के पास भी खुल्ले नहीं थे….इन लड़कियों ने हमें जकड़ लिया…और मेरे पैर पर मत्था टेककर रिरियाने लगी….."एक रुपया दे दो ….तोहर जोड़ी बनी रही…घर में सुन्दर ललना आयी…..ललना झुनझुना खेली….खूब पढ़ी और बड़ा होई"…ब्ला ब्ला ब्ला….  उस वक्त भईया के सामने उनकी ऐसी बातें सुनकर मैं बहुत जोर से हंसी…क्यों कि उन लड़कों की छींटाकसी से हमारा पाला पड़ चुका था…और ये तो बच्चियां हैं जो सीखाए और रटे-रटाये शब्दों के बाण से हमें छेद रही हैं…एक रुपए की खातिर… 

अपनी बातों पर मुझे  हंसते हुए देखकर उनमें से एक ने कहा…जाने दो दीदी तुम्हारे पास फुटकर पैसे नहीं हैं तो…लेकिन हमारी एक फोटो ले लो….अम्मा जाती हैं…एक बड्डे से साहब के घर बर्तन माजने…उन्होंने अपनी लड़की का फ्राक मेरे लिए दिया है..आज वही पहिने हूं….तो हमार फोटो ले लो…..

उनकी बातें सुनकर ना जाने मुझे किस तरह का दुख हो रहा था…उसे कोई शब्द देकर मैं नहीं बयां कर सकती….मैं उन्हें दस रुपए दी और वहां से चल दी….लेकिन दिमाग मे उन बच्चियों की खनकती हुई आवाज शोर मचा रही थी….एक रुपया दे दो दीदी…एक रुपया दे दो भैया…


सोमवार, 24 दिसंबर 2012

यूं आयी याद.....

दिन भर घना कुहरा
कल कुछ ना दिखाई दिया
लेकिन
मेरे मन, मस्तिक पटल पर
चमकती रही तुम उजाले की तरह

रजाई में लेटे
अपलक निहारता रहा
तस्वीर तुम्हारी
और महसूस कर रहा था
हवा की चुभन को
कभी जो हमें छू कर गुजरी थी

सीने से चिपकी है मेरे
आज भी वो गर्माहट
जो तुम्हारे आगोश में आकर मिलती थी

लेकिन
ना जाने कहां से
आंखों से गिरने लगे
पानी के कुछ टुकड़े 
जो सारी यादें बहा ले गए

और दीवार पर लगी
तुम्हारी तस्वीर भी
धुंधली पड़ गई
दिन के घने कुहरे की तरह

मैं वही मादा हूं......

लड़की नहीं
एक यात्री बनकर
कहीं जाने की खातिर
धक्का मुक्की सहते हुए
बन्द हो जाती हूं मै भी
 बस के उस डिब्बे में

सीट पर बैठे पुरूष
हंसते हैं मुझपर
जब मैं हाथ ऊपर कर
कोई सहारा पकड़ खड़ी होती हूं

आता- जाता हर यात्री
मुझे धकियाते हुए
निकल जाता है..
पीछे खड़े कुछ पुरूष
मेरे पास आ जाते हैं
और भीड़ के बहाने
मेरे जिस्म को छूते हैं


कुछ निगाहों से ही
मेरा चीर हरण कर लेते हैं
कुछ चेहरे से अपनें
मुझे प्रलोभन देते  हैं

मेरा विवेक ठगा जाता है
लेकिन मैं विवश हूं
कि ना चिल्ला सकती
न लांछन लगा सकती हूं

ऐसे में
कंडक्टर की सीटियां
मेरे कानों को छेद जाती है
जैसे कोई मनचला
सीटी मार रहा हो मुझे

उस वक्त मेरे ह्रदय में
एक पीड़ा सी होती है
और
 मैं ये सोचती हूं
सच
मैं कोई यात्री नहीं
इन पुरूषों की भांति

मैं एक लड़की हूं..
मैं वही मादा हूं
जिसके पुरूष भूखे है...

रविवार, 23 दिसंबर 2012

बस्ती


रात के अंधेरे में भटकते हुए
मेरी बस्ती ना आना ऐ चांद
कि ये बस्ती तेरे काबिल नहीं

यहां आबरू नीलाम होती है
रात के सन्नाटे में
चीख सुनायी देती है
एक मासूम लड़की की
औरत बन जाती है जो
रात के अन्धेरे में

कुत्ते नोचते हैं यहां
उस नन्हे मासूम को
छोड़ जाती है एक मां
लोक लाज के मारे जिसे

दिल के किवाड़ यहां नहीं खुलते
कि
सूली पर चढ़ा दी जाती है
पिता की वो फूल सी गुड़िया
जो भर नही पायी
किसी का घर पैसों से

नम हो जाते हैं
जानवरों के आंख भी यहां
जानते हैं जो, अफसाने इस बस्ती के
यहां औरत के सपने
उसकी आंखों मे मरते है
और सांसो का कोई ठिकाना नहीं रहता

रात के अंधेरे में भटकते हुए
मेरी बस्ती ना आना ऐ चांद
कि ये बस्ती तेरे काबिल नहीं

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

परिचय

आटे की तरह
रिश्तों में सनी औरत
मर्द जिसका लोई बनाकर
समाज के तवे पर सेंकता है
पूड़ी कचौड़ी की भांति
जरुरत और सुविधा के मुताबिक
औरत इंसान नहीं है
उसका तो परिचय ही
मां-बहन और बीबी है
साड़ी गहने और परिवार
में उलझी औरत
सारा जीवन देखती है
बस एक ही मंजर
और इन्हीं के नाम का रंग चढ़ाकर
गुजार देती है जीवन अपना
सिर्फ एक ही परिचय से
अन्ततः मां-बहन और बीबी बनकर...

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

भाईयों के राज में बहनों की इज्जत


दिल्ली में चलती बस में एक लड़की के साथ गैंग रेप किया गया…इतने से जी नहीं भरा तो उसे बेरहमी से पीटा गया और बस से नीचे फेंक दिया गया…. इस कुकृत्य में शामिल दरिंदे कोई और नहीं बल्कि स्कूल के कुछ कर्मचारी थे …मन में आ रहा हैं चिल्लाऊं…..इस बात को हजार ढ़ंग से कहूं… सवाल करूं…..लेकिन एक ढंग से भी दिल का दर्द बयां नहीं हो पा रहा है…जिगर में आग लगी है,.. त्राहि-त्राहि मची है


गुवाहाटी में बीच सड़क पर सरेआम लड़की के कपड़े उतारे गए…बलात्कार किया गया और उसे पीटा भी गया…. … छोटी बच्चियों को भी नही बख्सा जा रहा है…उनको स्कूल छोड़ने वाला ड्राइवर इनके साथ दुष्कर्म कर रहा है ..कालेज जाने वाली लड़कियों के साथ उन्हीं के दोस्त साथी  रेप करके उनका एमएमएस बना कर दोस्तों में बांट रहे हैं….क्या महसूस करता है वह पुरुष जो बलात्कार की शिकार हुई लड़की का बाप है…भाई है…और क्या सोचता है उस दरिंदे पुरुष के बारे में जो लड़की को कहीं का नहीं छोड़ता …..क्या सोचता है एक पुरुष पत्रकार जो इस घटना को कलम करता है और क्या खलबली मचती है उस पुरूष पाठक में जो इस घटना को पढ़ता है…. कोई बताए….


औरत को मर्द की मां बहन बेटी के रूप मे विराजकर अपने लिए सुविधा क्यों वसूल करनी पड़ रही है। मां की कोख से पैदा होकर भाभी दीदी बुआ के बीच पलकर भी औरत का मान इमान मर्द की समझ से कोसों दूर रह गया है…सुना है मर्द औरत को जानने समझने के लिए किताबे पढ़ते हैं
कहीं किताबें तो बलात्कार करने के लिए उत्तेजित नहीं कर रही ???…….

.क्या हम वही हैं जो कहते हैं “बेटी बचाओ” और बुलंद आवाज में नारा लगाते हुए लोगों मे जागरुकता फैलाते हैं…..या फिर हम वो हैं जो कन्या भ्रूण हत्या में अपनी भागीदारी देते हैं केवल इस डर से कि अगर लड़की पैदा हुई तो कल को जवान होगी, बाहर निकलेगी दुनिया देखेगी..और इसी दुनिया के मर्द उसे अपने हवस का शिकार बनायेंगे…..
घर में अपने मां बहन जैसी औरत के दर्द से बेखबर मर्द जब घर से बाहर सड़क पर चलता है तो क्या हर लड़की उसे अपनी बीबी या रखैल नजर आती है….हम बस, गाड़ी मे यात्रा करते हुए भी परूषों के छुअन से बच नहीं पाते हैं…

पिछले महिने हरियाणा मे बलात्कार पर बलात्कार हो रहा था…अखबारों में घटनायें छप रहीं थी …बेटी का बाप शर्म के मारे आत्महत्या कर ले रहा था…..हरियाणा के मुख्यमंत्री लोगों को सुझाव बांट रहे थे कि बलात्कार से बचाने के लिए कम उम्र मे ही वहां के लड़कियों की शादी कर दी जाय…. 

हरियाणा राज्य को चलाने वाले मुख्यमंत्री के पास  एक पुरुष होने के नाते क्या बस यही एक सुझाव बचा था जनता में मुफ्त में बांटने के लिए…लड़की के ब्याह कर किसी एक पुरुष की निजी संपत्ति घोषित कर देने से क्या समाज मे मुंह बाये घूमने  वाले दरिंदे औरत को बाहर निकलने पर मां-बहन के निगाह से देखने का लाइसेंस प्रदान कर देगें…..
औरत के जीवन के सारे फैसले सुनाने वाला पुरुष प्रधान देश ही बताए क्या छोटी उमर में शादी करनें से यह कुकृत्य रुक जाएगा…तो लाखों वेदनाओं को अपने सीने में दबा लेने वाली औरत यह कुर्बानी देने को भी तैयार है... औरत के दिल में मर्दों की प्रताड़ना के सारे कंकड़ पत्थर जमा हैं जो दिनोंदिन बढ़ते  जा रहे हैं…औरत के सीने में ये हिल-डुल रहे हैं जो एक दिन हाहाकार के सुर जरुर छेडेंगे…..

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

यादों के पन्ने...

कल
हां कल ही
तुम्हारी एक-एक याद उठायी
और पलकों से पोछकर
वापस रख दी
लेकिन
इतने से जी नहीं माना
हिम्मत करके पलटा मैनें
यादों के पन्ने को
और सीने से लगाकर देर तक
यूंही तन्हा बैठी रही
आंखो की बहती लोर से
यादों के पन्ने भीग गए


देखो..
भीगने का जिक्र आया तो
बर्बस ही वो बारिश याद आ गई
जिसमें तन और मन हमारा
साथ-साथ भीगा था
एक दूसरे के प्रेम में
और आंखों मे आंखे  डालकर
तुमने वादा किया था
कभी ना साथ छोड़ने का....

गांव से शहर की ओर......


मुहल्ले में किसी के घर कोई छोटा बच्चा ना होने की वजह से 3 साल की भतीजी घर-घऱ की चहेती और उसकी तोतली जुबान लोगों के मनोरंजन का साधन है….और उन औरतों को भी प्यारी है जो मुहल्ले मे कूटनीति करती हैं और घर के किसी एक सदस्य से झगड़ा हो जाने पर उसके घर के बच्चे बच्चे पर नफरत की ज्वाला उगलती हैं……श्रेया ने ममी(मम्मी) पापा कहना तो दांत आने के बाद ही सीख लिया लेकिन दद्दी (दादी) ताता (चाचा) रानी(नानी) कहना अपने तीन साल की उमर पूरी करते हुए सीखा….

तेजी से बड़ी हो रही इस बच्ची को फुर्सत के क्षणों मे मुहल्ले वाले गिनती, पहाड़ा, और कविताएं सिखाते है….कविताओ का नाम आते ही जेहन में बस एक ही कविता याद आती है..मछली जल की रानी है…जो शहर  के बच्चों के पूर्वजों की विरासत भले ही ना हो…लेकिन गांव में ये हमारे पूर्वजों के जमाने से चला आ रहा है…कि जब हम चलना सीख जाते थे और मुंह मे एक- दो दांत उग आते थे..तब कभी स्कूल का मुंह भी ना देखने वाली हमारी दादी को यह कविता मुहजबानी याद रहती थी…और वे हमें राजा-रानी की कहानियां सुनाते-सुनाते ऐसी दो-चार कविताएं हमारे जेहन में ऐसे चिपका देती थीं जो बचपन के दिन गुजार देने के बाद अभी भी हमारे दिमाग में तैरते हैं……लेकिन गांव में ही बचपन के खेल खेल रही भतीजी को पहले ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार सिखाया गया फिर ए बी सी डी और अब वन टू थ्री….हमें क ख ग घ पढ़ाकर पाला गया हम एक, दो तीन चार सीखे….फिर कई सालों बाद जाकर इसे अंगरेजी में वन टू थ्री कहना सीखे………मतलब जो अंगरेजी की बयार बही हैं..इसनें गांव को चपेट में ले लिया है……

गांव में अब दूरदर्शन और डीडी न्यूज देखने वाले लोग गए तेल लेने…..लोग सैकड़ो चैनल का मजा नोच रहे हैं……और उसी मिट्टी में सानकर अब बच्चों को गढ़ रहे हैं…. मतलब गांव के बच्चे को गांव में ही शहरी बाबू के रंग में रंगा जा रहा है…बच्चे को चम्मच से खाना सीखा रहे हैं…..पैर छूना भुलवाकर नमस्ते बोलना सीखा रहे हैं……गांव की एक अलग-थलग  महक चैन-सुकून, सोंधी खुशबू टाइप जिस संस्कृति पर हमें गूरूर है ना उसे हमारे अपने ही कुचल रहे हैं…धरासाई हो रही है हमारी विरासत…